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प्रिमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सू०४ नैरयिकाणां द्वादशादिसमर्जितत्वम् १८१ । अथ चतुरशीतिसममितसूत्रमाह-'नेरझ्याण मंते इत्यादि। 'नेरइया णं भंते !! नैरयिकाः खलु.मदन्त ! 'किं चुलसीइसमज्जिया' किं चतुरशीतिसमर्जिताः एकसमये चतुरशीतिसंख्यया। समुत्मा श्चतुरशीतिसमर्जिताः कथयन्ते । 'नो चुलसीइसमज्जियार, नो चतुरशीतिसमशिताः एकसमये एकस्मादारभ्या व्यशीतिसंख्यया समुत्पनाः नो चतुरशीतिसमनिताः कथ्यन्ते । 'चुलसीईए य नो चुलसीईए य समविजया३' चतुरशीत्या च नो चतुरशीत्या च समर्जिताः३, 'चुलसीइहिं समज्जिया' चतुरशीतिभिः समर्जिताः अनेकाभि चतुरशीतिसंख्यामि समजिसा इति। चुलसीइहि य : नो चुलसीईए य. समज्जिया' चतुरशीविभिश्च नो . चतुरशीस्याच समर्जिताः अनेकाभिश्चतुरशीतिभिः तथा नो चतुरशीत्या च युक्ताः चतुरशीतिभिश्च नो चतुरंशीत्या च समर्जिता भरन्तीति पञ्चविल्पा५ । तत्र लारकाणां, कतमो विकर गोऽभिमत इति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि गोयमा' हे गौतम ! .... अब सूत्रकार ८४ समर्जित सूत्र का कथन करते हैं-'नेर झ्याणं भंते ! हे भदन्त ! एक समय में नैरयिक 'किं चुलसीहसज्जिया' क्या ८४ की संख्या में समर्जित होते हैं ? उत्पन्न होते हैं ? अधधा-'नो चुलसीह समज्जियार' एक से लेकर ८३ की संख्या में उत्पन्न होते हैं ? अथवा'चुलसीईए थ नो चुलसीईय य समज्जिया३' चौरासी की संख्या, में
और नो चौगसी की संख्या में उत्पन्न होते हैं३ ? अथवा 'चुलसीहहिं समज्जिया४' अनेक चौराली की संख्या में उत्पन्न होते हैं ? अथवा'चुलसीहहिं यनो चुलसीई.य समज्जिया' अनेक चौराली की संख्या में और एक नो चौराली की संख्या में उत्पन्न होते हैं ? इस प्रकार के ये पांच प्रश्न हैं-इनमें कौन सा विकल्प अभिमत है इस बात को प्रकट
करने के लिये प्रभु उत्तर के रूप में गौतम से कहते हैं-गोयंखा नेर. ' , ' सूत्रा२ ८४ यायाशी समत सूत्र -४थन ४२ छ 'नेरइयाणं
भंते !... मगर ना समयमा 'कि चुलसीई समज्जिया' याशिाना सध्याथी समत...य छ १ 64न. थाय छ ? अथवा 'नो चुलसीई समज्जिया'२ मेथी बने ८३ यासीनी सध्या सुधीमा ५न्न थाय छ १२, ચર્યાશીની સંખ્યામાં અને ને ચોર્યાશીની સંખ્યામાં ઉત્પન્ન થાય છે? ૩ म चुलसीहि समज्जिया'४, मन थार्याशीनी सच्याम पन्नथाय छ १४ भया 'चुलसीइहिय नो चुलसीइए य समज्जिया' मने यार्याशानी सध्यामा અને એક નો ચોર્યાશીની સંખ્યામાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રમાણેના એ પાંચ પ્રશ્નો છે. આ પૈકી કયો વિકલ્પ સંમત છે, એ વાત બતાવવાને પ્રભુ ઉત્તર