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भगवतीं
Pédoon 125
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इति सर्वेषां शेपाणाम् - असुरकुमारादारभ्य स्तनितकुमारपर्यन्तानां तथा पृथिवीकायिकादिवनस्पतिका पर्यन्तानां तथा द्वीन्द्रियादारभ्य सिद्धपर्यन्तानाम्"द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रियतिर्यक्पञ्चेन्द्रिय- मनुष्याणां सिद्धानां च सर्वेपासूअपविद्दुर्ग, अल्पबहुत्वम् 'जहा छक्कसमज्जियाणं' यथा षट्कसमर्जितानां षट्कसम जितप्रकरेणाऽल्पबहुत्वं कथितं तथैव एषां सर्वेषामल्पबहुत्वं स्वयमूह'नीयम् । 'नवरं' नवरं - विशेषस्तु केवलमयम् - ' वारसाभिलावो द्वादशाभिलापः, षट्केति अभिलापोऽस्ति अत्र तु द्वादशेत्यभिलापो वक्तव्यः 'सेसं तं चेव' शेषंतदेव, अवशिष्टं सर्व पट्कसमर्जितवदेव विज्ञेयम् इति ।
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'असुर कुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के भवनपतियों का, तथापृथिवीका कि से लेकर वनस्पतिकायिक तक के जीवों का तथा द्वीन्द्रिय से लेकर सिद्ध तक के जीवों का द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय तिर्यकू पंचेन्द्रिय, मनुष्य और सिद्धों का इन सब का - अल्प बहुत्व 'जहा छक्कसमज्जियाणं' जैसा षट्क समर्जित प्रकरण में अल्प बहुत्व कहा गया
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है उसी के अनुसार अपने आप समझ लेना चाहिये यदि इसमें 'कोई . विशेषता है तो वह 'षट्क की जगह 'द्वादश' इस पद के प्रयोग किया है . अर्थात् षट्कलमर्जित' प्रकरण में जैसे बटुक प्रयोग किया गया है वैसे
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ही यहां उसकी जगह 'द्वादश' पद का प्रयोग करके अभिलाप बना लेना चाहिये बाकी के अवशिष्ट कथन में कोई अन्तर नहीं है वह सब कथन षट्क समर्जित प्रकरण के अनुसार ही है ऐसा जानना चाहिये ।
-અસુરકુમારાથી ‘લઈ ને સ્તનિતકુમાર સુધીના ભવનપતિચાનું તથા પૃથ્વી. કાયિકથી લઈને વનસ્પતિકાયિક સુધીના જીવાનું તથા એ ઇન્દ્રિયથી લઈને सिद्ध सुधीना ं भवानु' में इन्द्रिय, त्रष्णु मुद्रिय, यार इन्द्रिय तिर्यय १·३ન્દ્રિય मनुष्य અને સિદ્ધોનુ અર્થાત્ આ બધાનુ અલ્પપણુ અને મહુપણુ
"जहाँ छक्कसमज्जियाणं' देवी रीते षटूभय समत अमरशुभां मध्यपालु
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અને અહુપણ કહ્યુ છે. એજ પ્રમાણે સમજી લેવુ'. આમાં જે વિશેષતા
ते षटुनी कन्या 'द्वादृश' से पहले प्रयोग उरखेो न विशेषष
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છે. અર્થાત્-ષટ્ક સમજીતના પ્રકરણમાં જેમ ષટ્કના પ્રયેાગ કરેલ છે, એજ
રીતે અહિયાં ષટ્ ની જગ્યાએ ‘દ્વાદશ' પદ્મના પ્રચાગ કરીને અભિલાય
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અનાવી લેવા તે સિવાયના બાકીના કથનમાં કાંઈ જ ફેરફાર નથી. અધુ જ 'उने षट् समभित
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शुभा मुद्या प्रभाव १, छे 1 IPCH
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