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भगवतीस्त्रे इमे नारका नरके समुत्पद्यन्ते न तवान्येषां सामर्थ्य कारणमपि तु नारकजीवानां स्वकीयकात्मकमेव सामर्थ्य कारणम् , येन नारकाः तत्र समुत्पद्यन्ते । ईश्वरादि प्रभावात् नरकादौ नारकस्योत्पत्तिस्वीकारे ईश्वग्वैपम्यनैघण्ययोः प्रसङ्गात् अतः स्वकीयसामर्थेनैव समुत्पत्ति भवति न तु परसापर्येनेति । 'एवं जार वेमाणिया' एवं यावद्वैमानिकाः, एवं नारकवदेव वैमानिकपर्यन्तेषु त्रयोविंशतिदप्डकेवपि ज्ञातव्यम् एजेन्द्रियादारभ्य वैमानिकान्तजीवाः नारकरदेव स्वसामर्थ्येनेव उत्पद्यन्ते न तु परसामर्थेनेति भावः । उद्वर्तनायामपि स्वसामर्थ्यस्यैव प्रयोजकत्वं दयितुमाह-'नेरइया गं' इत्यादि। 'नेरइगाणं भंते !' नेरयिकाः खलु भदन्त ! में उत्पन्न होते हैं लो उस उत्पत्ति में अन्य-ईश्वर, काल आदि की शक्ति कारण नहीं है किन्तु नारक जीवों का अपना ही फर्मरूप लामर्थ्य कारण है इसीसे नारक वहां उत्पन्न होते हैं-यदि ईश्वरादि के प्रभाव से नरकादि में नारक की उत्पत्ति स्वीकार की जावे तो ईश्वर में विषमता और निर्दयता की आपत्ति प्रलक्त होती है अतः अपनी शक्ति से ही समुत्पत्ति नरक में नारक जीवों की होती है पर की शक्ति से नहीं ऐसा ही मानना उचित है । 'एवं जाव देवाणिया' इसी प्रकार का कथन उत्पत्ति के विषय में वैमानिक तक के २३ दण्डकों में भी जानना चाहिये अर्थात् एकेन्द्रिय से लेकर वैमानिक तक के जीव नारकों के जैसे अपनी सामय से ही उत्पन्न होते हैं-पर सामर्थ से नहीं।
अब सूत्रकार उद्वर्तना में अपनी सामर्थ्य ही प्रयोजक है इस घातको प्रकट करने के लिये प्रश्नोत्तर के रूप में कहते हैं-'नेरहया णं भंते ! किं
छ - ना२४ 4 न२४i S4-1 थाय छ, a पत्तिमा अन्य-श्वर-31m વિગેરેની શક્તિ તેમાં કારણરૂપ હોતી નથી. પરંતુ નારક છએ પિતે કરેલા કર્મરૂપ પિતાનું જ સામર્થ્ય કારણ છે. તેથી જ નારક ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે જે ઈશ્વરાદિના પ્રભાવથી નરક વિગેરેમાં નારકની ઉત્પત્તિ સ્વીકારવામાં આવે તે ઈશ્વરમાં વિષમપણું અને નિર્દયપણાની આપત્તિ ઉપસ્થિત થશે. જેથી પિતાની શક્તિથી જ નરકમાં નારકની ઉત્પત્તી થાય છે. બીજાની શક્તિથી નહીં એજ भान योग्य काय छ 'एव जाव वेमाणिया' मा शतर्नु थन पत्तिना વિષયમાં વૈમાનિક સુધીના ૨૩ તેવીસ દંડકામાં પણ સમજવું અર્થાત્ એકેન્દ્રિયથી લઈને વૈમાનિક સુધીના જીવે નારકોની માફક પિતાના સામર્થ્યથી જ ઉત્પન થાય છે બીજાના સામર્થ્યથી નહીં
હવે સૂત્રકાર ઉદ્વર્તનમાં પિતાનું સામર્થ્ય જ ઉપગી છે એ વાત भता। प्रश्नोत्तर३२ श्थन रे छे. 'नेरइया णं भते ! किं आइड्ढीए उववट्टति