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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०१० सू०१ जी० सोपक्रमनिरुपकमायुष्यत्वम् ११९ क्रमेणैव च्यवन्ते इति वक्तव्यम् ज्योतिष्कवैमानिकयोरुद्वर्तना स्थाने च्यवनस्यैव प्रयोगात् तयोश्च्यवनस्यैव प्रयोगात् तयोश्च्यवनमेव कथनीयं न तु उद्वर्तनमिति । उत्पत्तिरुतना च जीवानां स्वकृतकर्मणैव भवतो न तु ईश्वरप्रभावेणेति दर्शयितु मृद्धयादिरूपमग्रिमप्रकरणमवतारयितुमाह-'नेरहया णं' इत्यादि, 'नेरइया णं भंते !' नैरयिकाः खलु भदन्त ! 'कि आइडीए उववज्जति' किमात्पर्या उत्पद्यन्ते आत्मना-स्वस्य ऋद्धिः-सामर्थ्यम् आत्मदिस्तया तथा च नारकजीवाः स्त्रकीय सामर्थेन उत्पधन्ते नरके इत्यर्थः, अथवा 'परिडीए उववज्जति' परद्धर्थी उत्पधन्ते-परस्य-रवव्यतिरिक्तस्य ईश्वरकालस्वभाशदेः ऋद्धिः-सामर्थ्यम् तया उत्पधन्ते, ततश्च किं नारकाः परस्य-ईश्वरादेः सामर्थ्यवलात् समुत्पधन्ते ? इति प्रश्ना, भगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'आउडीए उवव. ज्जंति नो परिडीए उववज्जति' आत्मऋया उत्पद्यन्ते नो परऋद्धयोत्पद्यन्ते, ये किन्तु च्यवन शब्द का ही प्रयोग करना चाहिये 'जत्पत्ति एवं उद्वर्तना जीवों की जो होती है वह अपने द्वारा किये गये कर्म के उदय से ही होती है-ईश्वर के प्रभाव से नहीं होती है। इसी बात को प्रकट करने के लिये अघ सूत्रकार ऋद्धि आदिरूप अग्रिम प्रकरण का प्रारंभ करते हुए प्रश्नोत्तर के रूप में प्रकट करते हैं-'नेरइया णं भंते!'हे भदन्त ! नैरयिक जीव किं आहडीए उघवज्जति' क्या अपनी सामर्थ्य रूप ऋद्धि से नरक में उत्पन्न होते हैं ? अपवा-'परिडीए उववज्जति' पर कीईश्वर, काल, स्वभाव आदिरूप पर की सामथ्र्य से उत्पन्न होते है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! आइड्डीए' इत्यादि-हे गौतम! नरक में नारक अपनी सामथ्र्य रूप ऋद्धि से ही उत्पन्न होते हैं पर की ऋद्धि से उत्पन्न नहीं होते हैं तात्पर्य यह है कि जो ये नारक जीव नरक જોઈએ. પરંતુ ચ્યવનનો જ પ્રયોગ કરવો જોઈએ. “ઉત્પત્તિ અને ઉદ્વર્તના જીવની જે થાય છે, તે પિતે કરેલા કર્મના ઉદયથી જ થાય છે –ઈશ્વરના પ્રભાવથી થતી નથી. આજ વાત બતાવવા માટે હવે સૂત્રકાર ઋદ્ધિ વિગેરે રૂપે આગળના પ્રકરણ प्रार' ४२di प्रश्नोत्तर ३५i प्राट ४२ छ.-'नेरइया णं भवे!है भगवान नारीय व 'कि आइड्ढीए उबवज्जति' शु' पोतना सामथ्य'३५ *द्धिथी न२४मा उत्पन्न थाय छ ? अथवा 'परिड्ढीए उववज्जति' परनी-१२-४-२मा विगैरे રૂપ બીજાના સામર્થ્યથી ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે है-'गोयमा! आइड्ढोए' त्याहि गौतम ! न.२४ न२४मा पाताना सामथ्य ३५ રૂદ્ધિથી જ ઉત્પન થાય છે. બીજાની ઋદ્ધિથી ઉત્પન્ન થતા નથી, કહેવાને ભાવ