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अमेयचन्द्रिका टीका २०२० उ०१० सु०१ जी० सोपक्रमनिरुपक्रमायुज्यत्वम् ११ 'किं आइडीए उवचति परिडीए उचचट्टति' किमात्मद्वर्या उद्वर्तन्ते परधर्षा उत्पधन्ते । हे सदन्त ! नारकजीवाः किं स्वकीयसामर्थेन उद्वर्तन्ते, परसामर्थ्येन घा उद्वर्तन्ते ? इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयसा' हे गौतमः! 'आइडीए उववति नो परिडोए उवबटुंति' आत्मऋद्धया उद्वर्तन्ते नो.परऋद्धया उद्वर्तन्ते यदिदं नारकाणां मरणापरपर्यायम् उद्वर्तनम् तद् स्वसामर्थ्यनेति भगवत उत्तरम् । 'एवं जाब वेमाणिया' एवं यावद्वैमानिकाः, यावत्पदेन एकेन्द्रियादारभ्य वैमानिकपर्यन्तं सर्वेऽपि दण्डकाः संगृहीता भवन्ति त्था , यथा नारकजीवानासुद्वर्तनं स्वकीरसागादेव नहु परकीयमापात त्या एकेन्द्रियादारभ्य वैमानिकपर्यन्तजीवानापति उद्वर्तनाम् रत्र व सासूनेच भाति न तु परकीयसामर्थेनेति भावः। 'नारं जोइलिश्वेमाणिरा य यंतीति आइडीए उववति परिडीए उधमट्टति' हे अदना नरयिक जीव क्या अपने सामथ्र्य से उछलना करते हैं या पर के खानी से उतना करते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोथमा! आइड्रोए उशवत्ति नो परिडीए' हे गौतम ! नारक जीव अपने सामर्थ्य सही उदलना करते हैं पर के सामथ्र्य नहीं अदनारक जीवों का जो बहभरणरूपपर्यायवाला उद्धर्तन है वह उनकी शक्ति से ही होता है, परकीय सामर्थ्य से नहीं होता है एवं जाव वेमाणिया' इसी प्रकार से एकेन्द्रिय ले लेकर वैमानिक तक के समस्त दण्डक संगृहीत हो जाते हैं तथा च-जिस प्रकार से नारक जीवों का जवर्तन अपने सामर्थ्य से ही होता है परकीय सामर्थ्य से नहीं होता, उसी प्रकार से एकेन्द्रिय से लेकर वैमानिक पर्यन्त जीवों का भी उद्वर्तन अपनी २ सामर्थ्य से परिढीए उवषति' से.मगवन् नैरयि ७१ शु पाताना सामथ्याथी 6
ના કરે છે? કે બીજાના સામર્થ્યથી ઉદ્વર્તન કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु छ है-'गोयमा ! आइड्ढीए उववति नो परिड्ढीए'. 8 गौतम નારક જીવ પિતાના સામર્થ્યથી જ ઉદ્વર્તન કરે છે. બીજાના સામર્થ્યથી કરતા નથી. અર્થાત્ નારક જીવેનું જે આ મરણરૂપ પર્યાયવાળું ઉદ્વર્તન છે, ततमानी शतिथी २५ थाय छ, भाना सामथ्यथी थतु नथी. एवं जाव वेमाणिया' मा शत मन्द्रियथा धन वैमानि सुधीना भा. કેને સંગ્રહ થઈ જાય છે. તથા જે રીતે નારક નું ઉદ્વર્તન પિતાના સામર્થ્યથી જ થાય છે બીજાના સામર્થ્યથી થતું નથી. એ જ રીતે એકેન્દ્રિ થી લઈને વૈમાનિક સુધીના જીવેનું ઉદ્વર્તન પણ પિતાપિતાના સામર્થ્યથી જ