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________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२० उ०९ १०१ लब्धिमतः गत्यादिनिरूपणम् स वि चारणः खलु इत: एकेन उत्पातेन 'णदणपणे समोसरणं कोई' नन्दनवने समवसरण-स्थितिं करोति, 'करित्ता' नन्दनबने समवसरणं कृत्वा-नन्दनवने गत्वेस्या , 'तहि चेहयाई वंद' तत्र नन्दनवने चयानि भगवज्ञानानि चन्द, 'वंदित्ता' तत्र नन्दनम्ने चैन्यानि वन्दिता तो पडिनियत्तह' नतो-नन्दनननाद प्रतिनिवर्तते-परावर्तने 'पडिनियत्तित्ता इहमागन्छ।' ततः प्रतिनिवृत्य-परावृत्य इहागच्छति यस्मात् स्थानात् उत्पातं कृतवान् तस्मिन्नेव स्थाने समागतो भवतीति, भागच्छित्ता इस चेहयाई बंदई' इहागत्य इ5 चत्यानि-ज्ञानानि वन्दते, 'विज्माचारणस्स गं गोयमा ! उडू एवइए गाविसए पन्नत्ते' विधाचारणस्य खल भदन्त ! पतावान् गतिविषयः प्रज्ञप्ता, उमेतावत् प्रमाणकं गति गोवरक्षेत्र समुदाहृतम् । उक्तश्च-विद्याचारणस्योर्ध्वगतिविपये पढमेण नंदणवणं वीउप्पारण पंडगणमि । एड इई तइएणं, जो विज्जाचारणो होइ' ॥१॥ विद्याचारण यहां से एक उत्पात में नन्दनवन में पहुंच जाता है वहां पहुंचकर 'तहिं चेहयाई वंदह' वहां जिनेन्द्र देव के श्रुन आदि ज्ञानों की वन्दना करता है उनझी छन्दना करके फिर वहां के पाडकवन में द्वितीय उत्पात से पहुंचना है वहां पहुंचकर वह वहां पर भगवान के श्रुत आदिज्ञानों की वन्दना करता है उनकी वन्दना करके फिर यह अपने पूर्व अधिष्ठित स्थान पर वापिस आ जाता है और वहां आकर के वह जिनेन्द्रदेव संबंधी सुत आदि ज्ञानों घी बन्दना करता है। इस प्रकार से-'विज्जाधारणसणंगोधमा रहूं' हे गौतम ! विद्याचारण की अर्ध्वगति का विषय काला गया है अर्थात् ऊर्य में उनकी गति का विषय इतना क्षेत्र । पाहा भी है-'पढमेणं' नंदणवर्ण' इत्यादि। ગૌતમ તે વિદ્યાગાણ અહિથી એક ઉત્પાતમાં ન દનવનમાં પહોંચી જાય છે. मन त्यां पहचान 'तहि चेहया वह' त्यो छनेन्द्र ३१ त Alld જ્ઞાનની વંદના કરે છે. તેની વંદના કરીને તે પછી તે ત્યાંથી પાછા આવતી વખતે પાંડુક વનમાં બીજા ઉત્પાતથી પહેરે છે. ત્યાં પહોંચીને ત્યાં ભગવાનના યુવાન વિગેરે ની વંદના કરે છે. તેની વદના કરીને પછી તે પિતાના પૂર્વના સ્થાન પર પાછો આવી જાય છે. અને ત્યાં જવીને તે જનેન્દ્ર દેવ બંધી દૃન વિગેરે ની વંદના કરે છે. એ રીતે જિજ્ઞपारणस्स ण गोरमा उदीत वियन निनो वि५५ કહો છે. અર્થાત ઉપરમાં તેઓની ગરિ વિષય એટલા ક્ષેત્ર છે. કઇ महे-'परमेण नयण' या
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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