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________________ भगवतीने ऋजु विकुर्विष्यामीति वक्र विकुर्वते विलक्षणं रूपादिकं कर्तुमिच्छति तदा कुटिलमेव रूपादिकं कुर्वते इत्यर्थः 'वक विउविस्सामीति उज्यं विउव्वई' 'क' वक्रं कुटिलमित्यर्थः विकुक्ष्यिामीति ऋजु विकुर्वते यदिच्छति ततो विपरीतमेव विकुर्वते इत्यर्थः 'जं जहा इच्छह णो तं तहा विउबई' यद् यथा इच्छति नो तत् तथा विकुर्वते, इच्छानुकल्ये विजुणिमामर्थ्यांमार इतिभावः। 'से कहमेयं भंते ! एवं तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? हे भदन्त । एतत् एकजातीयत्वेऽपि अमुरकुमारदेवयोवलक्षण्यम् तत् एवाभयोः समानत्वेऽपि कथं वैलक्षण्यम् ? इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'असुरकुमारा से उस वस्तुको कर लेता है। 'एगे असुर सुनारे देवे उज्जुयं विउविस्सा. मीति वकं विडयद तथा दूसरा जो असुरकुमार देव है । 'में विलक्षण रूपादिकों की विक्रिश करू" ऐला जप सोचता है तथ वह वैसा न करके कुटिल ही रूपादिकों की विक्रिया करना है। 'वकं विउघिस्सामीति उज्जुयं विउव्वह' और जब मैं चक्र अटिल रूपादिकों की विकु. वणा करूं' ऐसा सोचता है तब वह ऋजुक विकर्वणा करता है इस प्रकार वह जैसी विकुर्वणा करना चाहता है वह वैसी चिकुर्वणा न करके उससे विपरीत ही विकृर्वणा करते हैं अतः 'जं जहा इच्छा णो तं तहा विउव्वई' जैसी वह चाहता है वैसी वह दिक्रिया नहीं कर पाता है। इस प्रकार से उसमें इच्छानुकूल विकुर्वणा करने के सामर्थ्य का अभाव है । 'से कहमेयं भंते ! एवं' सो हे भदन्त ! एक जातीयत्ता होने पर भी दोनों असुरकुमार देवों में इस वैलक्षण्य होने का क्या कारण है। उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा!' हे गौतम । તે “હું વિલક્ષણ રૂાદિની વિક્રિયા કરૂ” એ પ્રમાણે જ્યારે વિચાર કરે છે, त्यारे ते प्रमाणे न Rai दुटित ३पाहिनी विजया रे छ. "वक विठस्सामी ति उज्जुयं विउव्वई" मन या "हु-टिस पानि विध्या કરૂછે એ પ્રમાણે વિચારે છે, ત્યારે તે કાજુ-સરળ વિદુર્વણું કરે છે. એ રીતે તે જેવી વિમુર્વણા કરવા ઈચ્છે છે, તેવી વિમુર્વણ ન કરતાં તેનાથી જુદા ३५नी विgg। २ छ. रथी "जं जहा इच्छई" णोतं तहा विउव्वइसी વિક્રિયા કરવા ઈચ્છે છે, તેવી વિકિયા તે કરી શકતા નથી, તેવી રીતે ઈચ્છા प्रभा विधु'! ४२वानी Als तनामा मा छे. “से कहमेयं भंते । एवं" હે ભગવન એક જાતીપણું હોવા છતાં પણ બને અસુરકુમાર દેવમાં આ પ્રમાણે જુદાપણું હવામાં શું કારણ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે –
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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