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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०५ सू०४ असुरकुमारविकुणानिरूपणम् ५७ देवा दुविहा पन्नत्ता' अमुरकुमारा देवा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा मायिमिच्छादिहि उवयन्नगा य' मायिसिथ्यादृष्टयुपपन्नकाश्च 'अमायि सम्मदिहि उववन्नगा य' अमाथि सम्यग्दृष्टयुपपन्नकाश्च । 'तत्थ णं जे से मायिमिच्छादिति उववन्नए असुरकुमारे देवे' तत्र खलु यः स माथियिथ्यादृष्टयुपपन्नकोऽनुरकुमारो देवः, 'से गं उज्जुयं विउविरसामीति विउदइ स खलु ऋजुक विकुर्विष्यामीति वक्रं विकुर्च ते 'जाव णो तं तहा विडवई' यावर नो तत् तथा विकुर्वते अत्र यावत्पदेन 'चक विउव्विस्सामीति उप्जुयं विउन्धड जं जहा इन्छ।' एतदन्तस्य ग्रहणं भवति अमुरकुमारेषु मध्ये यो मायिमिथ्यादृष्टयुपपन्नः स यथा असुरकुमारा देक्षा दुविधा पण्णता अलुर असारदेव दो प्रकार के होते हैं। 'तं जहा' जैसे 'मायिमिच्छादिष्टि उपवनगा य, अमाथि सम्मदिहि उववनगा ये एक मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और दूसरे आमारी सम्यग्दृष्टि उपन्नक 'तस्य गंजे ले माथिमिच्छादिष्टि जववन्नए असुरकुमारे देवे' इनमें जो माथी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक असुरकुमारदेव है । 'से उज्जु विउविस्वामीति वकं विउवह वह ऋजुक चिकुर्षणा करूं ऐसा विचार करता है किन्तु वक्र विकणा उनसे हो जाती है, 'जाच णोतं तह चिउन्बई' यावत् वह जैसी विचारता है ऐसी चिकुर्वणा नहीं कर पाता है। यहां यावत्पद से '६कं विविस्तामीति उज्जुयं विउदा जं जहा इच्छई' इस पाठ का संग्रह हुआ है। असुरकुमारों के बीच में जो मायी मियादृष्टि उपपन्नक असुरकुमार है वह जैसा जो संकल्प करता है उसे पैसा नहीं कर पाता किन्तु संकल्पित से विपरीत ही करता है इसमें कारण उसके मायी सिध्यादृष्टि होने का प्रभाव है। "गोयमा !" है गौतम ! "असुरकुमारा देवा दुविहा पण्णत्ता" असु२९भार हे से प्रारना डाय छे "तजहा" "मायि मिच्छादिदि उववन्नगाय, अमायी सम्मदिदि उववन्नगाय" मे भाथी मिथ्या पन्न-पन्न थये डाय छ, मन भी अमाथी सभ्यटन-डाय छे. "तत्थ गंजे से मायिमिच्छादिट्ठी उववन्नए असुरकुमारे देवे" तेभा २ माथी मिथ्या पन्न:त्पन्न ये मसुशुमार है , “से णं उज्जुयं विउव्विस्सामीति बफ विउ. वह" -स२० वि ४३ "नाव नो तं तहा विउव्य" तम वियारे छ. पण यावत् ती वि शते। नथी. महिं यावत्पथी "वक विउस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ जं जहा इच्छइ" मा पनि सबथये। छेवा વિચાર કરે છે તે પ્રમાણે તે કરી શક નથી. પણ સંક૯૫થી જુદી રીતે જ रेछ. तनु ४२ तेनु भायाभिथ्याष्टिपथाना प्रभार छे. "तत्य णं ने