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________________ ५०२ भगवतीसूत्रे 'जाव ईसिपमाराए णं भंते ! सावद् ईपत्याग्भारा खलु भदन्त ! यावत् ईपत्माग् भारा पृथिवीमूत्रमायाति तावत्पर्यन्तमित्यर्थः । अत्रस्थ यावत्पदेन तिर्यग्लोकोचं लोकादिसूत्राणां ग्रहणं भवति एतत्सर्वं तत्रैव द्वितीयशतके अस्तिकायोदशके दशमे द्रष्टव्यम् अय ईपत्माग्भारा पृथिवी सूत्रमाह-'ईसिपम्भाराणं भंते ! पुढवी, ईषत्मग्भारा सिद्धशिलेतिनाम्ना प्रसिद्धा खलु भदन्त ! पृथिवी 'लोयागासस्स कि संखेज्जइभाग० ओगाढा पुच्छा' लोकाकाशस्य किं संख्येयमागं० अवगाहा पृच्छा, असंख्येयभागं वेति प्रश्नः, 'गोयमा ! हे गौतम ! 'नो संखेज्जइमार्ग ओगाढा' नो संख्येयभागमवगाढा 'असंखेज्जइभागं ओगाढा' असंख्येयभागमवगाढा 'नो संखेज्जे भागे नो असंखेज्जे' नो संख्येयान् भागान् नो असंख्येयान् गया है वैसा ही यहाँ पर यावत् ईपत्प्रारभारा पृथिवीसूत्र पर्यन्त कह लेना चाहिये यहां यावत्पद से तिर्थग लोक, अलोक आदि सूत्रों का ग्रहण हुआ है यह लय द्वितीयशतक के १० वें अस्तिफायोद्देशक में देख लेना चाहिये। 'ईसिपमारा ण पुढवी' हे भदन्त ! जिसका दूसरा नाम सिद्ध शिला है ऐसी ईषत्वारभारा नाम की जो पृथिवी है वह लोकाकाश के संख्यातवें भाग को व्याप्त करके स्थित है या असंख्यातवें भाग को व्याप्त करके स्थित है ? इस गौतम के प्रश्न पर प्रभु उत्तर देते हैं 'गोयमा ! नो संखेज्जइभाग ओगाहा' हे गौतम ! ईषत्प्रारभारा पृथिवी लोकाकाश के संख्यातवें भाग को व्यास कर स्थित नहीं है किन्तु 'असंखेजाभाग ओगावा' लोकाकाश के असंख्यातवें माग को ध्यास कर स्थित है 'नो संखेज्जे भागे.' असंखेज्जे भागे.' वह लोक के संख्यात भोगों को अथवा असंख्यातभागों को भी व्याप्त થાવત ઈલ્ઝામ્રારા પૃથિવી સૂત્ર સુધી સમજી લેવું. અહિયાં યાત્પદથી તિર્યક, ઉદર્વક વિગેરે ગ્રહણ કરાયા છેઆ તમામ વિષય બીજા શતકના समां मस्तिय देशाभान सभल वनस. 'ईसीप-भारा णं पुढवी' હે ભગવન ઈત્માગુભારા પૃથિવી-કે જેનું બીજું નામ સિદ્ધશિલા છે, તે લકાકાશના સંખ્યામાં ભાગને વ્યાપ્ત કરીને રહી છે? અથવા અસંખ્યાતમાં ભાગને વ્યાપ્ત કરીને રહી છે? ગૌતમ સ્વામીના આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छ ४-'गोयमा ! नो संखेज्जइभागं छोगाढा' गीतम! पत्प्रामा। पृथिवी alsशना सध्यातमा लागन ०५.० ४ीन ही नथी ५ 'असंखे जइभार्ग भोगादा' शन! असभ्यातमाला यात शन रही छे. 'नो संखेज्जे
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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