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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उं०४ सू०१ प्राणातिपातादीनां परिभोगनिरूपणम् ५ . द्रव्याणि न अजीवद्रव्याणि वा धर्मास्तिकायादयस्तु अजीवरूपद्रव्याणि । एतानि सर्वाणि 'जीवाणं परिभोगत्ताए हव्यमागच्छंति' जीवानां परिभोगतया हव्यमागच्छन्ति किम् ?, अर्थात् एतानि जीवाजीवद्विपकारकाण्यपि द्रव्याणि जीवः परिभुज्यन्ते नवेति । हे भदन्त ! एते सर्वे माणातिपातादारभ्य कलेवरपर्यन्ताः पदार्थाः जीवानां भोगाय भवन्ति नवेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा!' इत्यादि । 'गोयमा! हे गौतम ! 'पाणाचाए जाव एए णं दुविहा जीवदया य अजीवदया य' प्राणा. विपातो यावत् एतानि द्विविधानि जीवद्रव्याणि चाजीवद्रव्याणि च 'अस्थेगइया जीवाणं परिभोगताए हन्धमागच्छति' अरत्येककानि जीवानां परिभोगतया हव्यमागच्छन्ति 'अस्थगइया जीवाणं जाव नो हन्धमागच्छंति' अस्त्येककानि जीवानां यावत् नो हव्यमागच्छन्ति हे गौतम ! प्राणातिपातादयः कलेवरान्ताः सर्वे इमे अजीव द्रव्यरूप हैं तथा जो धर्मास्तिकायादिक हैं वे अजीवद्रव्य. रूप हैं ये सब 'जीवाणं परिभोगत्ताए हच्चमागच्छति' जीवों के परिभोग में काम आते हैं या नहीं ? अर्थात् ये सब जीवों द्वारा भोगे जाते हैं या नहीं भोगे जाते हैं ? प्रश्न का आशय ऐसा है कि हे भदन्त ! प्राणातिपात से लेकर शरीर पर्यन्त पदार्थ जीवों के भोग के लिये होते हैं अथवा नहीं होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम 'पाणाइवाए जाव एए णं दुविहा जीवदव्या य अजीवदव्वा य' प्राणातिपात आदि दोनों प्रकार के जीवद्रव्यों और अजीव द्रव्यों में से 'अत्थेगड्या' कितनेक द्रव्य ऐसे हैं जो 'जीवाणं परिभोगत्तए हव्वमागच्छंति' जीवों के परिभोगरूप से काम में आते हैं। अत्थेगहन्या' तथा कितनेक द्रव्य ऐसे हैं जो 'अत्थेगइया जीवाणं जाव नो हन्ध. मागच्छंति' जीवों के परिभोगके काम में नहीं आते हैं तात्पर्य कहने तथा २ स्तिय विगेरे छ, त म०प०५३५ छे. मे मया "जीवाण परिभोगताए हव्वमागच्छंति" वाना परिक्षामा म मा छ, है नथा આવતા? પૂછવાનો આશય એ છે કે-હે ભગવન પ્રાણાતિપાતથી આરંભીને શરીર સુધીના પદાર્થ જીવને ભેગવવા માટે હોય છે? કે નથી હોતા? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -“गोयमा !” 3 गौतम ! "पाणाइवाए जाव एए ण दुविहा जीवदव्या य-अजीबव्वा य" प्रातिपात भन्ने प्रसना ॐ द्रव्यो पै "अत्थे गइया" सा द्रव्यो मेवा छ २ "जीवाणं परिभोगत्ताए हमागच्छंति" वन परिक्षाग३५थी मां भावे छे. "अत्येगइया" Sears द्रव्य ॥ छ । २ "अस्थेगइया जीवाणं जाव नो हन्धमागच्छंति"
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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