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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०४ सू०१ प्राणातिपातादिक्रियानिरूपणम् ४६५ साथ एक क्षेत्रावगाहरूप से नहीं होता है ऐसा यह बन्ध नहीं होता है। 'एवं जहा पढ़मसए छट्टुद्देसए जाव णो अणाणुपुन्विकडा ति वत्तव्य सिया' इस प्रकार से जैसा प्रथम शतक में छठे उद्देशे में 'अणाणुपुच्चिकडात्ति वत्तव्यं लिया' इस पाठ तक जो विषय इस संबन्ध में कहा गया है वह सब यहां ग्रहण कर लेना चाहिये। वहां 'जाव निबाधाएणं ऐसा पाठ है सो वहां आगत यावत् पद से यह विवक्षित पाठ यहां गृहीत हुभा है-'सा भंते कि ओगाढ़ा कज्जह अणोगाढा कज्जह ? गोयमा ! ओगाढा कज्जा णो अणोगाढा कमाई' यहां से लेकर 'नो अणाणुपुग्जिकड़ाति बत्तवं लिया यहां तक का सब पाठ गृहीत हुआ है। इस पाठ की व्याख्या प्रथम शतक के छठे उद्देशे में आगत द्वितीय सूत्र के ऊपर की गई मेरी प्रमेयचन्द्रिका नाम की टीका में देखना चाहिये। 'एवं जाव देवाणियाण' सामान्य जीव के विषय में प्राणातिपात से क्रिया होती है ऐसा जैसा कहा गया है उसी प्रकार से वैमानिक पर्यन्त २४ दण्डकों में जीव के विषय में प्राणांतिपात से क्रिया होती है ऐसा जानना चाहिये । 'नवरं जीवाणं एगिदियाण य निवाघाएणं छदिसि समुच्च નવા ઘડાની સાથે એક ક્ષેત્રાવગાહ રૂપથી હોતું નથી તેવી જ રીતે આત્મप्रशानी साथै मा ५५ ५ ३५ हातेनथी. "एवं जहा पढमसए छठुद्देसए जान णो अणाणुपुव्विकड़ात्ति वत्तव्वं सिया' मारीत पडे शता ७४. देशामा "अणाणुपुश्विकडाचि वत्तव्य सिया" माया सुधी. प्रभानु કથન આ વિષયના સંબંધમાં કરવામાં આવ્યું છે. એ પ્રમાણેનું સઘળું કથન महिए . त्या मागण "जाव निव्वापारण' मेवी 418 छ. तभी भावेत यावत् ५४थी नाये प्रभारना 48 मडियां घड थयो छे. “सा भते ! कि ओगाढा कन्जइ अणोगाढा कज्जइ गोयमा ! ओगाढा कन्नइ, णो अणोगाढा कज्जइ" 48थी बने "णो अणाणुपुचिकडात्ति वत्तव्वं सिया” मा सुधान। સઘળે પાઠ ગ્રહણ કરી લે. આ પાઠની વ્યાખ્યા પહેલા શતકના છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં આવેલ બીજા સૂત્ર ઉપરની મેં કરેલ પ્રમેયચંદ્રિકા નામની ટીકામાં જઈ आयु:. "एवं जाव वेमाणियाण" सामान्य बना विषयमा प्रातिपातथी ४ બંધ થાય છે. એવું જે કહેવામાં આવ્યું છે તે જ રીતે વિમાનિક સુધીના ચોવીસે યુકેમાંના એના વિષયમાં પ્રાણાતિપાતથી કમને બંધ થાય છે. से प्रभारी सम से'. "नवरं जीवाणं एगिदियाणय णिव्वाघाएणं छदिसि"
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