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trafद्रका टीका श० १७ उ० ३ ० २ चलनास्वरूपनिरूपणम्
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कथिता, पञ्चभेदानेव दर्शयति 'तं जहा ' इत्यादि । 'तं जा' तद्यथा 'ओरालियसरीरवलणा जाव कम्मगसरीरचलणा' औदारिकशरीरचलना यावत् कार्मणशरीरचलना अत्र यावत्पदेन चैक्रियाहारकर्तेजसशरीराणां ग्रहणं कर्तव्यम् तथा चौदारिकवैक्रियाहारकतैजस कार्मणशरीराणां पञ्चत्वात्संबद्धा चलनापि पञ्च प्रकारा भवतीति । 'इंदियचलणा णं भंते ।" इन्द्रियचळना खलु भदन्त | ' कइ विहा पण्णत्ता' कतिविधा- कतिप्रकारा प्रज्ञप्ता कथिता ? भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोमा' हे गौतम ! 'पंच विद्या पण्णत्ता' पञ्चविधा प्रज्ञप्ता इन्द्रियाणां श्रोत्रेन्द्रिया णाम् चलना तत्त्रायोग्यपुद्गलानामिन्द्रिरूपतया परिणमने इन्द्रियनिष्ठो व्यापार
की कही गई है । 'तं जहा' जैसे 'ओरालिय सरीर चलणा जाव कम्मगसरीर'चलणा' औदारिकशरीरचलना यावत् कार्मणशरीर चलना यहां यावत्पद् से 'वैक्रिय, आहारक, तैजस' इन शरीरों का ग्रहण हुआ है । इसलिये शरीरों के पांच होने से तत्संबद्ध चलना पांच प्रकार की कही गई है ।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'इंदियचलणा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता' हे भदन्त । इन्द्रियचलना कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता' हे गौतम | इन्द्रियचलना पाँच प्रकार की कही गई है 'तं जहा' वे पांच प्रकार ये हैं- 'सोइंदिय चला जाब फालिदियचलणा 'श्रोत्रेन्द्रियचलना यावत् स्पर्शनेन्द्रियचलना यहां यावत् शब्द से चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय' और रसनेन्द्रिय' इसका ग्रहण हुआ है श्रोत्रादि इन्द्रियों के प्रायोग्यपुद्गलों का इन्द्रियरूप से परिणमन होने में जो इन्द्रियनिष्ठ व्यापार है उसका नाम इन्द्रियचलना
अारनी आही छे, "तं जहा " ते या प्रभा छे - " ओरालियखरीर चला जाव कम्मगसरीरचलणा" मोहारि शरीर असना मडियां यावत्पस्थी “वैट्ठिय, भाडारड, तैक्स, या शरीरानु ग्रहेषु थयु' छे. मेथी यांथ प्रहारना શરીર। હાવાથી તે તે શરીર સખન્ધી ચલના પણ પાંચ પ્રકારની છે.
હવે ગૌતમ સ્વામી દ્રિય ચલનાના વિષયમાં પ્રભુને પૂછે છે કે"इंदियचलणाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता" हे भगवन् छद्रिय यसना टला अभारनी उडेवामां भावी छे ? तेना उत्तरमां अलु आहे हे "गोयमा ! पंचविद्या पण्णत्ता" हे गौतम इंद्रिय व्यसना यांय प्रहारनी उडेवाभां भावी छे, "तं जहा" ते या अहारे छे. "साईदियचलणा जाव फासिंदियचलणा”
ચલના અહિં યાવત્ શબ્દથી ચક્ષુ ઈન્દ્રિય, ઘ્રાણુ ઈન્દ્રિય, અને રસના ઈદ્રિય એ ત્રણે ગ્રહણ થયા છે. શ્રોત્ર
શ્રોત્રદ્રિય ચલના યાવતુ સ્પર્શીને દ્રિય