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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १७ उ० १ सू०३ शरीरेन्द्रिययोगानां क्रियानि० ३६३ ! गोयमा हे गौतम ! 'पंच सरीरगा पन्नत्ता' पञ्च शरीराणि प्रज्ञप्तानि 'तं जहा ' तथा 'ओरालिए जाव कम्मए, औदारिकं यावत् कार्मणम् अत्र यावत्पदेन आहा वैक्रियतैजसशरीराणां ग्रहणं भवतीति तथाचौदा रिकाहारकवैक्रियतैजसकार्मणभेदात् शरीरं पञ्चविधं भवतीति भावः । शरीरसंख्यां प्रदर्श्य शरीराश्रितेन्द्रियसंख्याज्ञानाय प्रश्नयन्नाह - 'कह णं भंते !' इत्यादि । 'कइ णं भंते !' कति खल भइन् ! 'इंदिया पन्नता' इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम | 'पंच इंदिया पन्नत्ता' पञ्च इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि 'तं जहा ' तद्यथा 'सोईदिए जाव फार्सिदिए' श्रोत्रेन्द्रियं यावत् स्पर्शनेन्द्रियम् -अत्र यावत् पदेन चक्षुरसनघाणानां संग्रहः तथा च श्रोत्ररसनम्राणचक्षुःस्पर्शनभेदात् इन्द्रियाणि पश्च विधानीत्यर्थः ' कइविहे णं भंते !' कतिविधः खलु देते हैं-- 'गोयमा ! पंच सरीरंगा पन्नत्ता' हे गौतम । शरीर पांच कहे गये है । 'जहा - ओरालिए जाव कम्मए' जैसे - औदारिक तथा यावत्पद गृहीत वैक्रिय आहारक तैजस एवं कार्मण अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- ' कइ णं भते । इंदिया पन्नत्ता' हे भदन्त ! शरीराश्रित इन्द्रियों की संख्या कितनी है - 'गोयमा ! पंच इंदिया पन्नत्ता' उत्तर में प्रभु कहते हैंहे गौतम! इन्द्रियों की संख्या पांच कही गई है। 'तं जहा' जैसे सोई- दिए जाव फार्सिदिए' श्रोत्रेन्द्रिय यावत्पद गृहीत - चक्षुइन्द्रिय, रसना इन्द्रिय, घाणइन्द्रिय, एवं स्पर्शनइन्द्रिय । अब गौतम प्रभु से ऐसा - पूछते हैं- 'कविहे णं भते ! जोए पण्णत्ते' हे भदन्त ! योग कितने कहे 1 प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु हे छे हैं गोयमा ! पंच सरीरंगा पण्णत्ता", गौतम ! शरीरो यांथ प्रारना वामां भाव्या हे, "तं जहा - ओरालिए जाव कम्मए” मोहारिङ, १ वैङिय आहार, तैक्स भने अर्भषु मडियां આહારક વિગેરે પદો યાવત્ પદથી ગૃહીત થયા છે. કહે છે डेंटली હવે ગૌતમ સ્વામી ઇંદ્રિયાના વિષયમાં પ્રશ્ન કરતાં णं भंते! इंदिया पण्णत्ता" हे अगवन् द्वियोनी सध्या तेना उत्तरभां अलु उडे छे है-" गोयमा ! गौतम । इन्द्रियोनी सध्या यांय उही छे, पंच इदिया "तं जहा " " सोइदिए जाव फासि दिए " श्रोत्र इंद्रिय, यक्षु इंद्रिय, સના इंद्रिय, घाणु (नासा) छद्रिय मने સ્પર્શ ઈન્દ્રિય. હવે ગૌતમ • स्वाभी अलुने योजना विषयभां अश्र अरतां हे छे - " कइविहे णं भंते ! जोए पण्णत्ते" हे भगवान् योग डेटला अभरना अडेवामां भाव्या हे ? - કે ही 1छे ? पण्णत्ता " प्रेम
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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