SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 664
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सु०९ द्वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६४१ समयक्षेत्राद् बहिरपेक्षया न स्पृष्टौ भवतः तत्राद्धाकालाभावात्, गौतमः पृच्छतिः - 'तिम्नि भंते! पोग्गलस्थिकायपरसा केवइएहिं धम्मत्थिकायप्पए सेठिं पुट्ठा ?' दे भदन्त ! त्रयः पुद्गलास्तिकायमदेशाः कियद्भिः धर्मास्तिकायमदेशैः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह - ' जहनपर अहिं, उक्कोस पर सत्तरसहिं, एवं अहम्मत्थिकायपरसेहि वि' हे गौतम! जघन्यपदे - जघन्येन, अष्टभिः, उत्कृष्टपदे - उत्कृष्टेन, सप्तदशभिः धर्मास्तिकायम देशैः त्रयः पुद्गलास्तिकायम देशाः स्पृष्टाः भवन्ति, तत्र जघन्येन पूर्वोक्तनयमतेन अवगाहमदेशस्त्रिधा अघस्तनोऽथवा उपरितनः त्रिधा, द्वारा स्पृष्ट होते हैं । समय क्षेत्र के बाहर की अपेक्षा वे स्पृष्ट नहीं होते हैं। क्योंकि वहां पर अद्धासमयका अभाव है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'तिन्नि भंते! पोग्गलत्थिकायपएसा के चहहिं धम्मस्थिकायपले हिंपुट्ठा' पुत्रलास्तिकाय के तीन प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों द्वारा स्पष्ट होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' जहन्नपए अहिं, उक्कोसपर सन्तरसरि, एवं अहमत्थिकापसे हि वि' हे गौतम! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश जघन्य से धर्मास्तिकाय के आठ प्रदेशों द्वारा और उत्कृष्ट से धर्मास्तिकाय के १७ प्रदेशों द्वारा स्पष्ट होते हैं । इसी प्रकार से वे जघन्य से अधर्मास्तिकाय के आठ प्रदेशों द्वारा और उत्कृष्ट से १७ प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं। इस विषय में खुलाशा कथन इस प्रकार से है-पद्यपि पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश जघन्य - रूप से एक प्रदेश में ही अवगाढ होते हैं परन्तु पूर्वोक्त नय के मताः વિચાર કરવામાં આવે તેા તેઓ અદ્ધાસમા વડે પૃષ્ટ થતા નથી, કારણુ કે ત્યાં અદ્ધાસમયના અભાવ છે. गौतम स्वामीनी प्रश्न - “ तिन्नि अंते ! पोग्गलत्थिकायपपसा केवइपहि धम्मस्थिकापसे हि पुट्ठा " હે ભગવન્ ! પુદ્ગલાસ્તિકાયના ત્રણુ પ્રદેશે ધર્માસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે ? भडावीर अलुना उत्तर- " जहन्नपप अट्ठहिं, उक्कोसपए सत्तर सहि, एवं अहम्मत्थिकायपपसेहिं' वि” हे गौतम! युद्धसास्तिठायना त्रयु अहेशेो धर्मास्तिभयना ઓછામાં ઓછા આઠ પ્રદેશ વડે અને વધારેમાં વધારે ૧૭ પ્રદેશા વર્ડપૃષ્ટ થાય છે. એજ પ્રમાણે પુદ્ગલાસ્તિકાયના ત્રણ પ્રદેશેા અધર્માસ્તિકાયના આછામાં આછા આઠ પ્રદેશે વર્ક અને વધારેમાં વધારે ૧૭ પ્રદેશે વડે પૃષ્ટ થાય છે. આ વિષયમાં નીચે પ્રમાણે સ્પષ્ટીકરણ આપવામાં આવ્યુ છે જો કે પુદ્ગલાસ્તિકાયના ત્રણ પ્રદેશ જઘન્ય રૂપે એક પ્રદેશમાં જ અવગાઢ હોય છે, भ० ८१
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy