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प्रमेयचन्द्रिका टीका शे० १२ उ० १० सू०३ रत्नप्रभादिविशेपनिरूपणंम् ४२१ सिय आया१, सिय नोआया२,' हे गौतम ! चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धा स्यात् आत्मा सदरूपः१, स्यात् नो आत्मा असद्रूपः२, “सिय अवत्तवं आयाइय नो आया. इय३' स्यात् अवक्तव्यम्-आत्मा सद्रूप इति च नो आत्मा-अनात्मा असद्रूप इति च युगपदव्यपदेष्टुमशक्यम्३, 'सिय आया य नो आया य१' स्यात् आत्मा च सदरूपः, नो आत्मा च-असद्रूप:१, 'सिय आया य नो आयाओ यर' स्यात् आत्मा च सद्रूप: स्यात् नो आत्मानश्च असद्रूपाः२, ‘सिय आयाओ य नो आया य३' स्यात् आत्मानश्च सदरूपाः स्यात् नो आत्मा च असदरूपः३, 'सिय आयाओ य नो आयाओ य४,' स्यात् आत्मानश्च सदरूपाः नो पात्मानश्च असदरूपा:४ 'सिय आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइ य१,' स्यात् आत्मा या असऐप है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'चउप्पएलिए खंधे सिय आया१, सिय नो. आया २' हे गौतम! चतुष्पदेशिक स्कंध स्थात् कथंचित् आत्मा-सद्रूप है१, कथंचित् आत्मा-अलद्रूप है २, 'सिय अव: तवं आयाइय नो आयाइय' और कथंचित् वह आत्मा और अनात्मा इन शब्दों द्वारा एक ही काल में कहा नहीं जा सकने के कारण अवक्तव्यरूप है ३, 'सिय आया-य नो आयाय' कथंचित् वह सदुरूप है और असदुरूप है४, 'सिय, आया य नो आयाओ य' कथंचित् वह एकप्रदेश की. अपेक्षा सरूप है और अनेक अपने प्रदेशों की अपेक्षा वह असदुरूप है.५, 'सिय आयाओ य, नो आया य' कथंचित् वह अपने अनेक प्रदेशों की अपेक्षा सद्रूप है और एक प्रदेशकी अपेक्षा असरूप है। 'सिय आयाओ य नो' आयाओय' कथंचित् वह चतुष्प्रदेशिक स्कंध अनेक प्रदेशों से सदरूप है, और अनेक प्रदेशों से असदप भी है७,
महावीर प्रभुना त्त:-" चप्पएसिए खंधे सिय आया१, सिय नो आयार" गौतम! या२शि २ (१) मभु अपेक्षा मात्म३५स३५ छ मन (२) मभु म.पेक्षाये मनात्म३५-मस३५ छ, “खिय अवत्तव्यं आयाइय, नो आयाइप३ " म मात्मा अन ना मामा शह 3
साथे अपाय पान, २0 ते ४थथित मतव्य ३५ ५५ छ. “सिय आया य नो आया य१ (१) भभु अपेक्षा स३५ पार छ भने मस३५ ५५ छ, "सिय आया य नो आयाओ य२" (२) ते धनी अपेक्षा કયારેક સદરૂપ પણ હોય છે અને પિતાના અનેક પ્રદેશની અપેક્ષાએ તે थारे मस६३५: ५५ उय छ, “सिय आयाओ य, नो आयाइय३ " (3) કયારેક તે પિતાના પ્રદેશની અપેક્ષાઓ. સંદુરૂપ હોય છે. અને કંપની અપે