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भगवतीचे भवति१, 'सिय नो आयार ' स्यात् नो आत्मा-अनात्मा असदरूपो भवतिर, 'सिय अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय३' स्यात्-अवक्तव्य वस्तु-आत्मा-सद्रूप इति च नो आत्मा-अनात्मा असद्रूप इति शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यम् ३, 'सिय आया य नो आया य४' स्यात् आत्मा-सद्पश्च, नो आत्मा-असद्पश्च४, ननु-अत्र 'एक आत्मा एक नो आत्मा' द्विकसंयोगा: त्मके प्रथमे भङ्गे त्रिपु प्रदेशेषु द्वौ विकल्पों कथं घटेते ? इति चेदत्राह-एते त्रयो; ऽपि प्रदेशद्वयोराकाशपदेशयोस्तिष्ठन्ति तदाकाशप्रदेशावगाहनापेक्षया एप द्विककिसी अपेक्षा सदरूप भी है१, और किसी अपेक्षा असदुरूप भी है २ 'सिय अवत्तव्वं आयाइय-नो आयाइय ३ तथा यह त्रिप्रदेशी स्कन्ध सद्रूप से और असदुरूप से एक साथ शब्दों द्वारा कहा नहीं जा सकता है क्योंकि प्रवृत्ति क्रमशः ही होती है-इस कारण. कथंचित अव. तव्य भी है. ३ । 'सिय आया य नो आया य ४' एक काल में कथंचित् यह सद्प भी है और असद्रूप भी है४, शंका-यहां 'एक-आत्मा एक नो अस्मा' इस द्विकसंयोगी पहले भंग में तीन प्रदेशों में दो विकल्प कैसे घटते हैं अर्थात् त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का एक प्रदेश आत्मा और एक अनात्मा हो गया किन्तु तीसरा प्रदेश क्या है ? उत्तर-त्रिप्रदेशी के ये तीनों प्रदेश दो आकाशप्रदेशों में रहते हैं उन दो आकाशप्रदेशों की अवगाहना की अपेक्षा से यह विकसयोगी पहला भङ्ग होता है। इसी प्रकार आगे भी दिकसंयोगी 'आत्मा अवक्तव्यम्' इस चौथे भंग में स३५ छ, (२) मभु४ अपेक्षा अस६३५ छ, “सिय अवत्तव्वं आयाइय नो. आयाइय३" (3) स६३५ मन अस३५ शह 43 साथे सवाथ्य હવાની અપેક્ષાએ તે અવકતવ્ય રૂપ પણ છે, કારણ કે શબ્દની પ્રવૃત્તિ
भश: 1 थाय छे. “सिय आया य नो आया य" (४) 2 + अणे ते કથંચિત સરૂપ પણ છે અને કર્થચિત્ અસદુરૂપ પણ છે.
શંકા–અહિયાં એક આત્મા એક ને આત્મા આ પ્રમાણેના વિકસગી આ પહેલા ભંગમાં ત્રણ પ્રદેશમાં બે વિકલ્પ કેવી રીતે ઘટિત થાય છે?
ઉત્તર–ત્રણ પ્રદેશના આ ત્રણે પ્રદેશે બે આકાશપ્રદેશમાં રહે છે. તે બે આકાશપ્રદેશની અવગાહનાની અપેક્ષાએ આ બ્રિકસગી પહેલે. #. मन छे. मे प्रमाणे वे पछी ५४ सियो "आत्मा अवक्तव्यम्" मा. याथा ममा ‘नो आत्मा अवक्तव्यम्' मा सात सभा समय