________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४१७ संयोगिक प्रथमो भङ्गो घटते । एवमग्रेऽपि चतुर्थे सप्तमे च भंगे विज्ञेयम् । एवं बहुबहुप्रदेशिकस्कन्धेषु सर्वत्र विकसंयोगिकभङ्गेषु द्वयोः स्थानयोरेकवचनमवगा; हनापेक्षया विभागापेक्षया च ज्ञातव्यमिति । 'सिय आया य नो आयाओ य५'. स्यात् आत्मा-सद्पश्च एकपदेशापेक्षया नो आत्मानौ अप्सद्पो अकैकमदेशापेक्षया, एकमदेशविवक्षया एकवचनम्, प्रदेशद्वये अनेकत्वविवक्षया सूत्रे बहुवचनम् । एवग्रेऽपि सर्वत्र बोध्यम् ५, 'सिय आयाओ य नो आया य६' स्यात् आत्मानौ सद्रूपौ च, नो आत्मा-असद्पश्चद, 'सिय आया य अवत्तव्यं आयाइय नों आयाइय७' स्यात् आत्मा सद्पश्च, अवक्तव्या-आत्मा सद्प इति च नो आत्मा 'नो आत्मा अवक्तव्यम्' इस सातवें भंगा में समझ लेना चाहिये इस प्रकार यहु बहु प्रदेशी स्कंधो में सब जगह विकसं योगी भंगा में दोनों स्थानों में एकवचन अवगाहना की अपेक्षा से तथा विभागों की अपेक्षा से जानना चाहिये। 'सिय आया य नो आयाओ य ५' एक प्रदेश की अपेक्षा यह कथंचित् सद्रूप है और इसके अनेक प्रदेश असदुरूप हैं५. यहां कहीं कहीं जो दो प्रदेशों में 'आया ऐसा एकवचन का प्रयोग किया गया है वह दो प्रदेशों का एकप्रदेश में अवगाढ आदि के एकत्व की विवक्षासे किया गया है तथा 'नो आयाओं ऐसा जो बहुवचन का प्रयोग किया गया है वह भेद (अलग अलग) की विवक्षा से किया गया हैइसी प्रकार से आगे भी समझ लेना चाहिये 'सिय आयाओय नो आया य६' तथा कथंचित् अनेक सद्रूप है और एक सद्रूप है ६, सिय. લેવું. આ પ્રમાણે બહુ બહુપ્રદેશીસકર્ધામાં બધેજ કિકસગીભંગામાં બને સ્થાનમાં અવગાહનાની અપેક્ષાએ એકવચન અવગાહનાની અપેક્ષાએ તથા विlain अपेक्षा समल . "सिय आया य नो आयामो ચ” (૫) સ્કંધની અપેક્ષાએ તે કથંચિત્ સદરૂપ છે અને પ્રદેશની अपेक्षा स्थायितू मस३५ छ महीने पडसा "पाया" मा એક વચનના પદને પગ કરવામાં આવે છે, તે સ્કંધની અપેક્ષાએ કરपामा माव्या छ, भने "नो आयाओ" मी मक्यनारे प्रयास ४२वामा આવ્યો છે, તે પ્રદેશની અપેક્ષાએ કરવામાં આવ્યા છે એજ પ્રમાણે भाजप सभ . “सिय आयाओ य नो आया य६" (6) तथा પ્રદેશની અપેક્ષાએ કર્થચિત સદરૂપ છે અને સકંધની અપેક્ષાએ અસદુરૂપ छ. " सिय आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय" ते भभु अपेक्षा
भ० ५३