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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० २ सहननभेदेन पुद्गलपरिवर्तननि. ११९ समान एव अभिलापक्रमोऽध सेय इति भावः। गौतमः पृच्छति-' एगमेगग्स णं भंते ! नेरइयस्स केवइया वे उचियपगलपरिय हा अईया?' हे भदन्त ! एकैकस्य खलु नैरयिकस्य कियन्तो क्रियपुद्गलपरिवर्ताः अतीताः ? भगवानाह-'अणंता' हे गौतम ! एकैकस्य नैरयिकस्य अनन्ताः वैक्रियपुदलपरिवर्ताः अतीताः सन्ति, गौतमः पृच्छति- केवइया पुरेक्खडा ?' हे भदन्त ! एकैकस्य नैरयिकस्य कियन्तो क्रियपुदलपरिवाः पुरस्कृताः भविष्यन्त ? भाधिनः सन्ति भगवानाह-" एकात्तरिया जाव अणंता" हे गौतम । एकैकस्य नैरयिकस्य एकोत्तरकाः एकप्रभृतयो यावत-द्वौ वा, त्रयो वा जघन्येन, उत्कृप्टेन तु संख्येया वा, असंख्येया चा, अनन्ता वा वैक्रिय पुद्गलपरिवर्ताः कस्यापि मानिनः सन्ति, वैमानिक देवों तक के जीवों का-चौवीस दण्डक प्रतिपाद्य जीवों का अभिलापक्रम समान ही है।। ___अब गौतमस्वमी प्रभु से ऐसा पूछते हैं " एगमेगस्त णं भंते ! नेरइयस्स केवड्या वेउवियपोग्गलपरियट्टा अईया" हे भदन्त ! एक एक नैरयिक के वैक्रिय पुगदल परिचत कितने हो चुके हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा कि हे गौतम ! 'अणता' एक एक नैर. यिक को वैक्रियपुद्गलपरिवर्त अनन्त हो चुके हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है-'देवया' पुरेक्खडा' हे भदन्त ! एक एक नैरयिक को कितने वैक्रिय पुगदलपरिवर्त आगे होना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एकोत्तरिया जाव अणंता' हे गौतम ! एक एक नैरयिक को एक से लेकर यावत्-दो अथवा तीन तक वैक्रिय पुगदल परिवर्त जघन्यरूप से होना है, तथा उत्कृष्ट रूप से किसी एक को संख्यात, असंख्यात.નારથી લઈને વૈમાનિક દેવે પર્યરતના સમરત જીવોને-૨૪ દંડકને અને–અભિલા૫કમ એક સરખો જ છે.
गौतम स्वाभानी प्रश्न-" एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्व केवइया वेउब्धिय पोग्गलपरियट्रा अईया ?" मग प्रत्ये ना२४ना मा वैठियपुसપરિત થઈ ચુક્યા છે?
महापार प्रभुना Sत्तर-" अणता" गौतम ! ना२४ मनात ठिय પુલપરિવર્ત કરી ચુક્યા છે
गौतम स्वाभाना प्रभ-"केवइया पुरेक्खडा १" है सपनप्रत्ये: નારક ભવિષ્યમાં કેટલા વૈકિવપુલપરિવત કરશે ?
महावीर प्रसुन 12-"पकोत्तग्यिा जाव अणंना "गौतम ! प्रत्ये નારક ઓછામાં ઓછા એક બે અથવા ત્રણ વક્રિયપગલપરિવત કરશે અને કેઈ નારક વધારેમાં વધારે સંખ્યાત, અસંખ્યાત અથવા અનંત