________________
ર
भगवती सूत्रे तथा सन्तो ज्योतिषिकवैमानिकाश्च्यवन्ति, नो असन्तश्च्यवन्ति, ' इति प्रश्नः । भगवान् तत्र कारणमाह-' से णूणं गंगेया ! पासेणं अरहया पुरिसादाणीपण, सासए, लोए, बुइए, अणादीए अणवयग्गे जहा पंचमसए, जाव जे लोक्कर से लोए, ' हे गाङ्गेय ! तत् नूनं निश्चयेन हि पश्यता = केवलज्ञानेनावलोकयता पुरुपादानीयेन पुरुषश्रेष्ठेन अर्हता पार्श्वनाथेन अयं लोकः शाश्वत अनादिकः अनवदग्रः यथा पञ्चमशतके नत्रमोदेश के उक्तः प्रतिपादितस्तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यः, तदवधिमाह - ' जाव जे लोक्कर से लोए ' " यावत्- यो लोक्यते स लोक इति पर्यन्तं बोध्यम्, तथाचानेन तत् सिद्धान्तेनैव स्वमतं समर्पितम्, यतः पार्श्वना विद्यमान असुरकुमारादि वानव्यन्तरान्त उद्वर्तन करते हैं, अविद्यमान ये उद्वर्तन नहीं करते ? तथा विद्यमान ज्योतिषिक और वैमानिक चवते हैं अविद्यमान ज्योतिषिक और वैमानिक चवते नहीं हैं ? इन प्रश्नों के उत्तर में भगवान् कारणका निर्देश करनेके निमित्त कहते हैं' से पूर्ण गंगेया ! पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं - सासए, लोए, - वुइए, अणादीए, अणवयग्गे, जहा पंचमसए, जाव जे लोक्कर, से लोए' हे गांगेय ! केवलज्ञान से देखनेवाले, पुरुषश्रेष्ठ अर्हन्त पार्श्वनाथने इस लोकको शाश्वत, अनादि और अनवद्य - अन्त रहित कहा है सो यह विषय जैसा पंचमशतक में नौवे उद्देशक में कहा गया हैउसी तरह से यह पर भी समझ लेना चाहिये । वहाँ पर लोक संबधी विषय ' जाव जे लोक्कर से लोए । यावत् जो जाना जा सके वह लोक है - यहां तक कहा गया है । उस तरह प्रभुने इस उनके सिद्धान्तसे ही સઁના કરે છે, અવિદ્યમાન નારક આદિ જીવા ઉદ્ધૃત્તના કરતા નથી ? વિદ્યમાન યેાતિષિકો અને વૈમાનિકો ચ્યવે છે, અવિદ્યમાન ચૈાતિષિકો અને વૈમાનિકો ચવતા નથી ?
"
भहावीर चलुना उत्तर— “ से गूण गंगेया ! पासेण अरहया पुरिसा दाणीपणं खास वुइए, अणादीए, अणवयग्गे, जहा पंचमसए जाव ने लोक्कइ से लोए ” हे गांगेय ! ठेवणज्ञानथी हेमनारा, पुरुषश्रेष्ठ पार्श्वनाथ अर्द्धते આ લાકને શાશ્વત, અનાદિ અને અનંત કહ્યો છે. આ વિષયનું પાંચમાં શતકના નવમાં ઉદ્દેશામાં જેવું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યુ છે એવું કથન અહીં अड ४२वु त्यांस संबंधी अथन " जाव जे लोक्कर से लोए " "08 જાણી શકાય તે લેાક છે,” અહીં સુધી કરવામાં આવ્યું છે, તે તે સમસ્ત થન અહી' ગ્રતુણુ કરવું