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________________ प्रमेयमन्द्रिका टी० श०९ उ०३२ सू०२. उद्वर्तनानिरूपणम् एवं यावत् स्तनितकुमाराः । सान्तर भंते ! पृथिवीकायिका उद्वर्तन्ते ? पृच्छा, गाङ्गेय ! नो सान्तरं पृथिवीकायिका उद्वर्तन्ते, निरन्तरं पृथिवीकायिकाः उद्वर्तन्ते, एवं यावत् वनस्पतिकायिकाः नो सान्तरम् , निरन्तरम् उद्वर्तन्ते । सान्तरं भदन्त ! द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते ? निरन्तरं द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते, 'गाङ्गेय ! सान्तरमपि द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते निरन्तरमपि द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते एवं यावत् वानव्यन्तराः। सान्तर भदन्त ! ज्योतिष्का च्यवन्ति ? पृच्छा, गाङ्गेय! सान्तरमपि ज्योतिष्का च्यवन्ति, तक जानना चाहिये । (संतरं भंते ! पुढविकाइया उव्वदृति, पुच्छा) हे भदन्त ! पृथिकायिक जीव सान्तर होकर निकलते हैं इत्यादि प्रश्न(गंगेया) हे गांगेय ! (णो संतरं पुढविकाइया उव्वदति निरंतरं पुढवि. काइया उवदृति) पृथिवीकायिक जीव व्यवधान सहित होकर नहीं निकलते हैं किन्तु वे निरन्तर निकलते हैं। (एवं जाव वणस्सइकाइया जो संतरं, निरंतरं उव्यति) इसी तरह का कथन यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिये-अर्थात् वे सान्तर होकर नहीं निकलते हैं किन्तु निरन्तर ही निकलते हैं। (सतरं भंते ! बेइंदिया उन्वटुंति, निरंतरं भंते ! उव्वटंति) हे भदन्त ! वे इन्द्रिय जीव सान्तर हो करके निकलते हैं या निरन्तर होकर के निकलते हैं ? (गंगेया) हे गांगेय ! (संतरंरि बेइंदिया उव्वदंति, निरंतरंपि वेइंदिया उन्वत ) वेहन्द्रिय जीव सान्तर भी निकलते हैं और निरन्तर भी निकलते हैं। (एवं जाव वाणमंतरा) इसी तरह का कथन यावत् वानव्यन्तरों तक के विषय में નિષ્ક્રમણ વિષયક કથન સ્વનિતકુમાર પર્યન્તના જ વિષે પણ સમજવું. (स'तर भंते ! पुढविझाइया उव्वदृति पुच्छा ) 3 महन्त ! पृथ्वी।यि । शुजना व्यवधानथा नीले छे विना व्यवधानथी नामे छ ? (ग गेया !) भागय । ( णो स'तर पुढविकाइया उध्वति, निरंतर पुदविकाइयो उव्वदृति) પૃથ્વીકાવિક છે કાળના વ્યવધાનથી (સાતર) નીકળતા નથી પણ નિરંતર (पिना व्यवधान) नीले छे. ( एवं जाव वणश्सइकाइया णो सतर, निर तर उन्नति ) वनस्पति पय-तना वो विष ५७ मे १ ४थन सभा. मेट है तमे। ५ सान्त२ नीता नथी पY निरन्तर नाणे छे. ( सतर भंते ! बेइदिया ऊबट्टति, निरंतर' भंते ! उव्वट्टति १) के महन्त ! दीन्द्रय છે કાળના વ્યવધાનથી નિષ્ક્રમણ કરે છે કે નિરંતર નિષ્ક્રમણ કરે છે? (गंगया !) 8 गांगेय ! ( स तरपि वेइंदिया उठवह ति, निरंतरपि उव्वदति ) કીન્દ્રિય જીવે સત્તર પણ નિષ્ક્રમણ કરે છે અને નિરંતર પણ નિષ્ક્રમણ કરે छ. (पवं जाव वाणमतरा) jor ४थन वान-यन्तरे। पयतन विषयमा ५
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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