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________________ १४ भगवती सूत्रे नेरइया उव्वहंति एवं जाव थणियकुमारा । संतरं भंते! पुढविकाइया उव्वहंति ? पुच्छा, गंगेया ! णो संतरं पुढविकाइया उव्वति, निरंतरं पुढविक्काइया उव्वति, एवं जाव वणस्सइकाइया णो संतरं, निरंतरं उच्चर्हति । संतरं भंते ! बेइंदिया उव्वति, निरंतरं वेइंदिया उवहंति ? गंगेया ! संतरंप इंदिया उठवहंति, निरंतरंपि वेइंदिया उच्च ति, एवं जाव वाणमंतरा । संतरं भंते! जोइसिया घयंति ? पुच्छा, गंगेया ! संतरंपि, जोइलिया चयंति, निरंतरंपि जोइसिया चयंति । एवं जाव वेमाणिया वि ॥ सू० २॥ छाया - सान्तरं भदन्त ! नैरयिका उद्वर्तन्ते ? निरन्तर नैरयिका उद्वर्त्त - न्ते गाङ्गेय ! सान्तरमपि नैरथिका उद्वर्तन्ते, निरन्तरमपि नेरयिका उद्वर्त्तन्ते । -: उछर्तनावक्तव्यताः 'संतरं भंते! नेरइया उनि ' इत्यदि । सूत्रार्थ - (संतरं भंते | नेरइया उव्वहंति, निरंतरं नेरहया उच्चति) हे भदन्त ! नैरयिक जीव व्यवधान सहित होकर के निकलते हैं या विना व्यवधान के निकलते हैं ? (गंगेया ) हे गाङ्गेय ! ( संतरंपि नेरइया उद्धति, निरंतरंपि नेरइया उन्बहंति ) नैरयिक जीव व्यवधानसहित होकर के भी निकलते हैं और विना व्यवधान के भी निकलते हैं । ( एवं जाव थणियकुमारा) इसी तरह का कथन यावत् स्तनित कुमारों ઉર્દૂત્તના વક્તવ્યતા— " 'सतर' भते । नेरइया उन्नति ” त्याहि सूत्रार्थ - ( स ंतर' भते ! नेरइया उत्रदृति, निरंतर नेरइया उन्हति ) હે ભદન્ત ! નારક જીવે। વ્યવધાન સહિત ( આંતરા સહિત ) નીકળે છે કે વિના વ્યવધાનથી ( કાળના આંતરા વિના ) નારક ગતિમાંથી બહાર નીકળે छे ? (गंगेया ! ) हे गांगेय ! ( सतरपि नेरइया उन्नति, निर'तरपि नेरया उन्नति ? ) नारी व्यवधान सहित पशु नार गतिभांथी नाम्जे छे मने विना व्यवधाने नाणे छे. ( एवं जाब थणियकुमारा ) मा प्रार
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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