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भगवती सूत्रे
रमपि समयादिकाला पेक्षया सविच्छेदमपि असुरकुमारा उपपद्यन्ते, अथ च निरंतरमपि समयादिकालापेक्षया विच्छेदरहितमपि असुरकुमारा उपपद्यन्ते, ' एवं जाव थणियकुमारा ' एवमसूरकुमार देव यावत् नागकुमाराः, सुवर्णकुमाराः, विद्युत्कुमाराः, अग्निकुमाराः द्वीपकुमाराः, उदधिकुमाराः, दिशाकुमाराः, वायुकुमाराः, स्वनितकुमारा अपि, सान्तरमपि उत्पद्यन्ते, निरन्तरमपि उत्पद्यन्ते । गाङ्गेयः पृच्छति - ' संतरं भंते ! पुढविकाइया उववज्जंति, निरंतरं उत्रवज्जंति ' हे भदन्त ! सान्तरं सव्यवधानं किं पृथिवीकायिकाः उपपद्यन्ते ? किंवा निरन्तरमव्यवधानं पृथिवीकायिकाः उपपद्यन्ते ? भगवानाह - 'गंगेया ! नो संतरं पुढवीकुमारा उववज्र्ज्जति, निरंतरं पि असुरकुमारा उववज्जंति) असुरकुमारों की उत्पत्ति दोनों प्रकार से होती है - सान्तर भी होती है और निरन्तर भी होती है - अर्थात् असुरकुमार समयादिरूप काल की अपेक्षा से व्यवधान युक्त होकर भी उत्पन्न होते हैं और समयादि रूप काल के व्यवधान के बिना भी उत्पन्न होते हैं । ( एवं जाव धणियकुमारा ) इसी तरह से नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, दधिकुमार, दिशाकुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार ये ९ भवन'वासी देव भी उत्पन्न होते हैं ।
अब गांगेय प्रभु से ऐसा पूछते हैं- ( संतरं भंते । पुढविक्काइया उववज्जंति, निरंतरं उववज्जंति) हे भदन्त । पृथिवीकायिक जीव सांतर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गंगेया) हे गाङ्गेय (नो संतरं पुढवीकाइया उववज्र्ज्जति, निरंतरं
नवज्जति, निरंतरपि असुरकुमारा उववज्ज ति ) असुरकुभारानी उत्पत्ति मन्ने પ્રકારે હાવ છે–સાન્તર પણ થાય છે અને નિરન્તર પણ થાય છે. એટલે કે અસુરકુમારાની ઉત્પત્તિમાં સમયાદિ રૂપ કાળનું વ્યવધાન ( આંતા ) પડે છે
शुभमने नथी थु पडतु " एवं जात्र थणियकुमारा " ४ प्रभा नागङ्कुभार, सुवर्णुञ्जभार, अनिठुभार, विद्युत्कुभार, उदधिभार, द्वीपकुमार, દિકુમાર, વાયુકુમાર અને સ્તનિતકુમાર, આ નવ ભવનવાસી દેવાની ઉત્ત્તત્તિના વિષયમાં પણ સમજવું.
गांगेय भथुगारनो अश्न - ( संतर भंते ! पुढविकाइया स्त्रवज्जति, निरतर उववज्ज'ति ? ) हे लहन्त ! पृथ्वी अयि वो सान्तर उत्पन्न थाय छे કે નિરન્તર ઉત્પન્ન થાય છે?
महावीर प्रभुना उत्तर--" गंगेया । " हे गांगेय ! ( नो संतर पुढवि. काइया उजवज्जति, निरंतर पुढविकाइयो उववज्जति) पृथ्वीमयि भवा