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________________ प्रमेयमन्द्रिका टीका श० ८ उ० ८ सू० ३ कर्मबन्धस्वरूपनिरूपणम् वान्, न वव्नाति, न भन्त्स्यति ४, अस्त्येककः कश्चित् न वद्धवान् बध्नाति, भन्त्स्यति ५, ' णो चेवणं न बंधी, वधइ, न बंधिस्सह ' किन्तु नो चैन नैव खलु कचिज्जीवो न बद्धवान् न वा भन्त्स्यति अपि तु बध्नाति ६, इति पष्ठो विकल्पो न संभवत्येव, एतस्य तत्त्वं स्पष्टीकरणसमयेऽग्रे विवेचयिष्यते, 'अत्थेगइए न वंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ ' अस्त्येककः कश्चित् न बद्धवान्, न वध्नाति अपि तु भन्त्स्यति ७, अत्थेगइए न बंधी, न बंध, न बंधिस्सर ' अस्त्येककः कश्चित् ग्रहणाकर्ष को जीवः ऐर्यापथिकं कर्म न बद्धवान्, न वध्नाति, न वा भन्त्स्यति ८ इतिभावः, एक जीव ने पूर्व में इसे बांधा है, वर्तमान में वह इसे नहीं बांध रहा है आगे भी वह इसे नहीं बांधेगा ४, किसी एक जीव ने पहिले इसे नहीं बांधा, अब इसे बांध रहा है, आगे भी बांधेगा ५, ' णो चेव णं न बंधी वधइ, न व धिस्लइ' ऐसा नहीं है कि " किसी जीव ने इसे नहीं बांधा नहीं किन्तु वह बांध रहा है " ऐसा वह छठा विकल्प नहीं बनता है । इस विषय को हम जब इसका स्वरूप स्पष्ट करने लगेगे तब कहेंगे 'अत्थेगइएन वधी न वध, व धिस्सइ ७' कोई जीव ऐसा होता है कि जिसने पूर्व में उसका वध नहीं किया है, न वह वर्तमान में इसका बंध कर रहा है - पर आगे इसका बंध करेगा - ' अत्थेगइए न बंधी न aas, a fees' कोई एक ऐसा जीव है कि जिसने पहिले इसका बंध नहीं किया है, वर्तमान में वह इसका बंध नहीं कर रहा है और न आगे भी वह इसका बंध करेगा ८ | , પૂર્વે તેને ખાંધ્યુ' છે, વમાનમાં તે તેને ખાંધતા નથી અને ભવિષ્યમાં ખાધશે નહી (૫) કાઈ એક જીવે પૂર્વે આ કમ બાંધ્યુ નથી, વર્તમાનમાં ખાંધે છે मने लविण्यमां पशु मधशे. ( णो चेत्रण न बधइ, वध, न बधइ " “ કાઇ જીવે તે કર્માંધ ખાંધ્યા નથી, બાંધશે નહી, પણ વત માનમાં ખાંધી रह्यो छे, આ પ્રકારને છઠ્ઠો વિકલ્પ અહીં મનતા નથી. તેનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કરતી ધખતે આ ખામતનુ કારણ આપવામાં આવશે. "" (७) " अत्थेगइए न वधी, न वधइ, ववित्सइ " अर्ध व मेवा होय કર્યો હતેા નથી, વર્તમાનમા बध ४२शे. (८) " अत्येगइए सेवा होय ेो भूतપણ કરતા નથી અને વિ છે જેણે ભૂતકાળમા ઐર્યાપથિક ક`ના બંધ या भरता नया, परन्तु भविष्यमां ते तेनो न वधी, न बंध, न बघिस्सइ " अध કાળમાં તેના ખાધ કર્યા હાતા નથી, વર્તમાનમાં ષ્યમાં પણ કરશે નહી .
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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