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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ ७०३१सू०६ श्रुत्वा प्रतिपन्नावधिहानिनिरूपणम् ७५९ लिनः पशिष्या अपि पवाजयेयुर्वा मुण्डयेयुर्वा । गौतमः पृच्छति-' से णं भंते ! सिझइ बुझइ जाव अंतं करेइ ? ' हे भदन्त ! स खलु श्रुत्वा केवलज्ञानी किम् सि यति, बुध्यते, यावत् मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानामन्तं करोति ? भगवानाह-हता, सिज्झइ वा जाव अंतं करेइ' हे गौतम ! हन्त सत्यं स श्रुत्वा केवलज्ञानी सिध्यति, वुध्यते यावत्-मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानामन्तं करोति । गौतमः पृच्छति-तस्स णं भंते ! सिस्सा वि सिझंति, जाव अंतं करेंति ?' हे भदन्त | तस्य खलु केवलिनः शिष्या अपि कि सिध्यन्ति यावत् बुध्यन्ते मुच्यन्ते गौतम ! उस श्रुत्वा केवलज्ञानी के प्रशिष्य भी प्रव्रज्या दे सकते हैं, दीक्षा दे सकते हैं। ___ अब गौतम प्रभु ले ऐसा पूछते हैं-(से णं भंते ! सिज्झइ, वुज्झइ जाव अंतं करेइ ) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा केवलज्ञानी क्या सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है ? यहाँ यावत् पद से "वुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति, सर्वदुःखानाम् ” इन पदों का ग्रहण हुआ है। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(हंता, सिज्झइ, चा जाब अंतं करेइ) हां, गौतम ! वह श्रुत्वा केवलज्ञानी सिद्ध होता है, वुद्ध होता है, यावत् मुक्त होता है, सब तरफ से सर्वथा शांत होता है और समस्त दुःखों का नाश करता है । (तस्स णं अते! मिस्सा वि सिझंति जाव अंतं करेंति ) हे भदन्त ! क्या उसके शिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का नाश करते हैं ? यहां यावत् पद से “वुध्यते" आदि क्रिया
__ मडावीर प्रभुने। :उत्तर-(हता, पवावेज्ज वा, मुंडावेज वा ) , ગૌતમ ! તેમના શિષ્યો પણ પ્રવજ્યા દઈ શકે છે અને દીક્ષા અંગીકાર કરાવી શકે છે
___ गौतम स्वाभान प्रश्न-(से ण भंते ! सिज्झइ, बुज्झइ, जाव अत' करेइ ?) 3 महन्त ! शु. ते श्रुत्वा वज्ञानी सिद्ध थाय छे, मुद्ध थाय छे, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત કર્મોને ક્ષય કરે છે અને સમસ્ત દુબેને અત કરે છે ?
महावीर प्रभुना उत्त२-(हतो, सिज्झइ वा जाव अंत करेइ ) &ी, ગૌતમ ! તે કૃત્વા કેવળજ્ઞાની સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત કર્મોને ક્ષય કરે છે અને સમસ્ત દુઃખોનો અંત કરે છે
गौतम स्वाभाना प्रश्न-( तस्स णं भंते ! सिस्सा वि सिझति, जाव अत करे ति ? ) 8 महन्त ! ते श्रुत्वा जीना शिष्य! ५ शु सिद्ध थाय छे मने समस्त मानो नाश ४२ छे ? म ' जाव ( यावत् )" ५६ द्वारा