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भगवनीसूत्रे परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति ? भगवानाह-'हंता सिझंति, जाव अंतं करेंति' हे गौतम ! तस्य शिष्या अपि हन्त सत्यं सिध्यन्ति यावत्-बुध्यन्ते, मुच्यन्ते, सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति च । गौतमः पृच्छति'तस्स ण भंते! पसिस्सा वि सिज्झति जाव अंतं करेंति ? ' हे भदन्त ! तस्य केवलज्ञानिनः प्रशिष्या अपि किम् सिध्यन्ति यावत् युध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदु खानामन्तं कुर्वन्ति? भगवानाह -'एवं चेव जाव अंतं करेंति' हे गौतम! एवमेव पूर्वोक्तरीत्यैव यावत् तस्य प्रशिष्या अपि सिध्यन्ति बुध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति चेति । गौतमः पदों का ग्रहण हुआ है "सर्वदुःखानाम्" इस पद तक। उत्तर में प्रभु कहते हैं-(हंता, सिझंति जाब अंतं करेंति ) हां, गौतम ! उस श्रुत्वा केवलज्ञानी के शिष्य भी सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अंत करते हैं । (तस्स णं भंते ! पमिस्सा वि सिझंति जाव अंत करे ति) हे भदन्त ! उस अल्वा केवली के क्या प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ? यहां पर भी यावत् पद से पूर्वोक्त “सिझंति" आदि क्रिया पदों का " सर्वदुःखानाम् " पद तक ग्रहण किया गया है। उत्तर में प्रभु कहते हैं-(एवं चेव, जाव अंतं करे ति) हे गौतम! पूर्वोक्तरीति के अनुसार यावत् उसके प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । यहाँ पर भी (यावत्) पद से "बुध्यंते, मुच्यन्ते, परिनिर्वान्ति, सर्वदु खानाम् " इन पदों का ग्रहण हुआ है। (बुध्यते, मुच्यते, परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् ) मा यिापहोने यह ४२कामा माया छे.
महावीर प्रसुने। उत्त२– (हता, सिझंति, जाव अंत करे ति ) , ગૌતમ ! તે થવા કેલીના શિષ્યો પણ સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત કર્મોનો ક્ષય કરે છે અને સમસ્ત દુઃખાને અ ત કરે છે
गौतम स्वामीना प्रश्न-( तस्स गं भंठे ! पहिस्सा वि सिझ ति जाव अंत करे ति ) 3 महन्त ! तमना प्रशिष्यो ५y शुं सिद्ध थाय छ, मुद्ध થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત પરિતાપથી રહિત થાય છે અને સમસ્ત દુઃખને અંત કરે છે ?
महावीर प्रभुन। त२-( एवं चेत्र जाव अत' करे दि १) गौतम ! શ્રવા કેવલીના શિષ્યોની જેમ પ્રશિષે પણ સિદ્ધ થાય છે, બુદ્ધ થાય છે, મુક્ત થાય છે, સમસ્ત પરિતાપથી રાહત થાય છે અને સમસ્ત દુખોને અંત કરી નાખે છે.