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प्रमेन्द्रका टीका श०८ उ० ८ सू०२ व्यवहारस्वरूपनिरूपणम्
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हारप्रायश्चित्तादिकं प्रस्थापयेत्, 'णो य से तत्य धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएण ववहार' पट्टवेज्जा' नो च नैव यदि तस्य व्यवहारकर्तुस्तत्र व्यवहर्तव्यादौ धारणा स्पात्तदा यथा यादृशं तस्र तत्र जीवं स्यात् तादृशेन जीते नैव व्यवहारं प्रायश्चित्तादिकं प्रस्थापयेत् मवर्तयेद, उपर्युक्तमुपसंहरन्नाह - 'इच्चेएहिं पंचविहार पट्टवेज्जा, तं जहा- आगमेणं, सुपणं, आवार, धारणाए, जीएणं' इत्येतैः उपर्युक्तेः पञ्चभिः भागम-श्रुता साधारणाजोतैः व्यवहार मायविचादिकं प्रस्थापयेत् प्रवर्तयेत्, तान्येवाह-वद्यथा आगमेन, श्रुतेन, आज्ञया,
रूप व्यवहार नहीं है, तो जैदी उसके पास प्रायश्चित आदि व्यवहार चलाने के लायक धारणा हो वह उससे, उस प्रकार का प्रायश्चित्त आदि देवें ( णो य से तत्थ धारणा दिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीए ववहारं पवेज्जा ) यदि व्यवहार कर्मा को व्यवहर्तव्य आदि में धारणा नहीं है तो जैसा उसके पास जीत व्यवहार हो, उससे ही वह उस प्रकार का प्रायश्चित्त आदि व्यवहार चलावे | अब सूत्रकार उस उपर्युक्त विषय का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि 'इच्चेएहि पंचहि ववहारं पडवेज्जा' इस प्रकार से इन पांच व्यवहारों से-आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत इनसे - व्यवहर्ता प्रायश्चित्त आदि को चलावें । इन्हीं व्यवहारों के नाम इस सूत्रद्वारा प्रकट किये गये हैं ' तं जहा'आगमेणं, सुरणं, आणाए, धारणाए, जीएणं' । इन आगम, श्रुत, आज्ञा धारणा और जीवरूप व्यवहारों में से किसी एक से जो जिसके पास
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વ્યવહાર ન હાય, તેા પ્રાયશ્ચિત્ત દિ દેવાને માટે તેની પાસે જેવી ધારણા होय, ते धारणा द्वारा तेथे ते अस्तु प्रायश्चित्त आहि हेतुं लेहये. ( णो य से तत्थ धारणा लिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीए णं ववहार पठ्ठवेज्जा ) જે વ્યવહાર કર્તાની પસે પ્રાયશ્ચિત્ત આદિ દેવાને માટે ધારણા ન હાય, તા તેની પાસે જેવા જીતવ્યવહાર હોય એવા જીતવ્યવહાર દ્વારાજ તેણે પ્રાયશ્ચિત્ત આદિ વ્યવહાર ચલાવે જોઇએ.
हवे सूत्र उपयुक्त विषयनो उपमार १२ ४ छे - ( इच्चे हि पंचहिं ववहार' पट्टवेज्जा ) आ अमरना या पांथ व्यवहारथी ( आगम, श्रुत, આજ્ઞા, ધારણા અને જીત) વ્યવહર્તાએ પ્રાયશ્ચિત આદિ વ્યવહાર यताવવા તે વ્યવહારાના નામ આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે પ્રકટ કર્યાં' છે( त 'जहा - आगमेण, सुएणं, आणाए, धारणाए, जीवणं ) मा भागभ, श्रुत, આજ્ઞા, ધારણા અને છતરૂપ વ્યવહારમાંના જે કાઈ એક વ્યવહાર જેની
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