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भगवतीस्त्र द्विविधः प्रज्ञप्ता, 'तं जहा-अणाइए सपज्जवसिए आणाइए अपज्जवसिए वा' तद्यथाअनादिकः सपर्यवसितः सान्तः, अनादिकः अपर्यवसितो वा अनन्तो वा 'एवं जहा तेयगस्स संचिट्ठणा तहेव, एवं जाव अंतराइय कम्मस्स' एवम् उक्तरीत्या यथा तैजसस्य शरीरप्रयोगवन्धस्य संस्थापना पूर्व प्रतिपादिता, तथैव ज्ञानावरणीयकार्मणस्थापि शरीरमयोगवन्धस्य स्थापना प्रतिपत्तव्या, एवं रीत्या यावत् दर्शनावरणीय. -वेदनीय-मोदनीयाऽऽयुष्क-नाम-गोत्रा-ऽऽन्तरायिककार्मणस्य शरीरप्रयोगवन्धस्य वक्तव्यता प्रतिपादनीया, विशेषस्त्वग्रे वक्ष्यते, अथ कार्मणशरीरप्रयोगस्य बन्धान्तरं प्ररूपयितुमाह-' णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगवंधतरेणं भंते ! फालो केवच्चिर होइ ? ' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगवन्धान्तर कम्मासरीरप्पओगबंधे दुविहे पण्णत्ते ) ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयो. गबंध दो प्रकार का कहा गया है-(तं जहा ) जो इस प्रकार से है(अणाइए सपज्जवसिए, अणाइए अपज्जवसिए) अनादि सपर्यवसित -सान्त, और अनादि अपर्यवसित-अनन्त । (एवं जहा तेयगस्स संचि. ट्ठणा तहेव, एवं जाव अंतराइयकम्मरस ) उक्तरीति से जैसी तैजसशरीरप्रयोगवंध की वक्तव्यता पहिले कही गई है, उसी तरह से ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगवंध की भी वक्तव्यता जाननी चाहिये। इसी तरह से दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय इन कार्मणशरीरप्रयोगबंधों की भी वक्तव्यता कहनी चाहिये। इस विषय में जो विशेषता होगी-उसे आगे कहा जावेगा। ___ अब सूत्रकार कार्मणशरीरप्रयोग वन्ध के अन्तर की प्ररूपणा करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-(णाणावरणिज्जकम्मासरीरशरी२ प्रयोग में प्रारना हो छ. " तजहा" २ प्राशनीय प्रमाणे छ-( अणाइए सपज्जवसिए अणाइय अपज्जवसिए ) (१) मनासय सित (मनाहि सान्त) मन (२) मनाहि अपय सित (सनहसनत) ( एवं जहा तेयगस्स संचिट्ठणा तहेव, एवं जाव अंतराइयकम्मस्स) पूरित शत वी તૈજસ શરીર પ્રયોગબંધની વક્તવ્યતાનું કથન પહેલાં કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે જ્ઞાનાવરણીય કામણ શરીર પ્રગબંધની વક્તવ્યતા પણ સમ
पी. मे प्रमाणे शनावरणीय, वेहनीय, भाडनीय, मायु, नाम, गोत्र અને અન્તરાય, આ કાર્મણ શરીર પ્રગબંધની પણ વક્તવ્યતા સમજવી. આ વિષયમાં જે વિશેષતા છે તે આગળ પ્રકટ કરવામાં આવશે.
હવે સૂત્રકાર કામણ શરીર પ્રયોગબંધના અન્તરની પ્રરૂપણ કરે છે– આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે