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अमेयचन्द्रिका टी श०८ उ०९ सू० ५ वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धवर्णनम् ३०९ प्रतिपत्तेः । गौतमः पृच्छति- रयणप्पभापुढविनेरइयपृच्छा' हे भदन्त ! रत्नप्रमापृथिवीनैरयिकश्च्छा , तथा च रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकपञ्चेन्द्रिय क्रियशरीरप्रयोगवन्धः कालतः किचिरं भवति ? भगवानाह-' गोयमा ! सबवधे एक्क समयं, देसवंधे जहण्णेणं दसवाससहस्लाइं तिसमयऊणाई, उकोसेणं सागरोवमं समयणं' हे गौतम ! रत्नप्रभापृथिवीनरयिकवैक्रियशरीरप्रयोगस्य सर्वबन्धः एक समयं भवति, देशबन्धस्तु जघन्येन दशवर्षसहस्त्राणि त्रिसमयोनानि, उत्कृष्टेन च सागरोपमं समयोनं भवति, तत्र त्रिसमयविग्रहेण रत्नप्रभायां जघन्यस्थितिको नैरयिका अवश्य ही औदारिक शरीर को ही प्रासकर लेते हैं। इससे देशवध का उत्कृष्ट समय एक समय कम अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-(स्थगप्पभापुढवि नेरइय पुच्छा) हे भदन्त ! रत्नप्रभाथिवी गत नारकपचेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर प्रयोगध का काल कितना है? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (सव्वयधे एक समयं, देसबधे जहण्णेणं दसवामसहस्साई तिसमयऊणाई उक्कोलेणं सागरोवयं समयऊणं ) प्रथमपृथिवी रत्नप्रभागत नारक जीव का जो वैक्रियशरीर है-उसके सर्ववध का काल एक समय का है और इसका जो देशव ध है-उसका जघन्य काल तीन समय कम दश १० हजार वर्षे का है और उत्कृष्ट काल एक समय कस एक सागरोपम का है। तीन समय कम दस हजार वर्ष का है। इसका तात्पर्य ऐसा है-कोई जीव तोन समय की विग्रहगति से जघन्य स्थिति તો તેઓ અવશ્ય દારિક શરીરને જ પ્રાપ્ત કરી લે છે. તેથી દેશબંધને ઉત્કૃષ્ટ સમય અન્તર્મુહૂર્તને કહ્યા છે.
हवे गौतभावामी महावीर प्रभुने यो प्रश्न पूछे छे ४-( रयणप्पभो पुढवि नेरइय पुच्छा ) 3 मह.d! २त्नप्रा पृथ्वीत न.२४ पथन्द्रियना વૈકિયશરીર પ્રગબંધ કાળની અપેક્ષાએ ક્યાં સુધી રહે છે?
महावीर प्रभुनी उत्तर-(गोयमा !) गौतम ! (सव्वब'धे एक्कं समय देसबधे जहण्णेण दसवाससहस्साई तिसमयऊणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं समयऊणं) पहली रत्नमा पृथ्वीगत ना२४ न यशरीना सधना કાળ એક સમયને છે અને તેના દેશબંધને ઓછામાં ઓછે કાળ ૧ હજાર વર્ષ કરતાં ત્રણ સમય ન્યૂન છે અને ઉત્કૃષ્ટકાળ સાગરોપમ કરતાં એક ન્યૂન સમયપ્રમાણ છે, તેને દેશબંધ જઘન્ય ૧૦ હજાર વર્ષ કરતાં ત્રણ ન્યૂન સમય પ્રમાણ કહેવામાં આવ્યો છે તેનું સ્પષ્ટીકરણ નીચે પ્રમાણે છે