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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.४ मू. १ कायिक्यादिक्रियानिरूपणम् ५७३ पञ्चविधाः खलु क्रियाः प्रज्ञप्ताः 'तंजहा- काइया, अहिगरणिया, एवं किरियापयं निरवसेसं भाणियव्यं जाव मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओं' तद्यथा कायिकी, आधिकरणिकी, एवम्-एतेन क्रमेण, क्रियापद प्रज्ञापनाया द्वाविशतितमपदं निरवशेष सर्व भणितव्यम्, तथाचोक्त प्रज्ञापनायाम्- 'काडया, अहिगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाडवाय किरिया' इत्यादि, कायिकी, अधिकरणिकी, प्रादेपिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातक्रिया च, इत्यादि. तदवधिमाह..- यावत्- मायामत्ययिक्यः क्रियाः विशेषाधिकाः, तथा च प्रज्ञापनाया अन्तिममुत्रम्-'एयासि णं भंते ! आरंथियाणं, परियाहियाणं, अपञ्चक्खाणियाणं, मायावत्तियाणं, अहिगरणिया. एनं किरियापयं निरक्सेसं भाणियां जाव मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ' कायिकीक्रिया, आधिकरणिकी क्रिया इसी क्रमसे यहां पर प्रज्ञापना का क्रियापद जो कि २२वां पद है
सम्पूर्ण कहना चाहिये । तथाचोक्त प्रज्ञापनायाम्- 'काड्या, अहिगरजिण पोओसिया पारियावणिया पाणाइवायकिरिया' इत्यादि कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और माणातिपात क्रिया यहां जो ऐसा कहा गया है कि 'जाव मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ' सो उसका तात्पर्य ऐसा है कि प्रज्ञापना का अन्तिम सूत्र- 'एयासिणं अंते ! आरंभियाणं, परिगाहियाणं ... अपञ्चक्खाणियाणं, मायावत्तियाण, मिच्छादसणवत्तियाण य कयरे पच किरियाओ एणताओ' यामे पाय प्रा२नी ही 'तं जहा' ते ॥२ नीय प्रमाणे छ- 'काइया, अहिगरणिया, एवं किरियापयं निग्वसेसं भाणियव्वं जाव मायावयित्ताओ किरियाओ विसेमाहियाओ' अयि ठिया, मधि४२९॥ ક્રિય’, ઇત્યાદિ જે કથન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના કિયા નામના ૨૨ મા પદમા કરવામાં આવ્યુ छ, त समस्त थन सही ए ४७ या ते ५६मा प्रमाणे प्रयु - 'काइया, अहिगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया' छियाना पाय
२ - [१] iful, [२] अधि४२४ी, [3] प्राषि४१, [४] परितापनि भने [५] प्रातिपात या महा ने मेवामां भाव्यु छ 'जाव मायावयित्ताओ किरियाओ विसेसाहियाओ' मा यननु तात्पनीय प्रमाण छ-ज्ञापनानु म तिमसूत्र २मा प्रभार छ- 'एयासिण भंते ! आरंभियाणं, परिगाहियाणं, अपञ्चक्खाणियाणं,