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प्रमेयचन्द्रिका टीका २.८ उ. ३ सू १ वृक्षविशेष निरूपणम्
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टीका-पूर्व द्वितीयोदेशके आभिनिवोधिकादिक ज्ञानं पर्यायतः मरुपितम् तेन च वृक्षादयोऽर्था ज्ञायन्ते अनस्तृतीयांश के ज्ञानविषयान् वृक्ष विशेषान् प्ररूपयितुमाह- ' कडविहाण भंते ! रुक्खा पण्णत्ता ? ' गौतमः पृच्छति - हे भवन्त ! कतिविधाः कियत्मकाराः खलु वृक्षाः प्रतप्ताः ? सगवानाह - 'गोयमा ! तिन्हिा रुक्खा कृष्णना' हे गौतम ! त्रिविधाः वृक्षाः प्रज्ञता, तं जहा - मखेज्जजीविया, असंखेज्जजीविया, अनंतजीविया ' तथथा - संख्येयजीविकाः, असंख्येयजीविकाः अनन्तजीविकाः, तर सख्येयाः संख्याता जीवा सन्ति एषु ते मख्येयजीविनः त एव सख्येयजीविगः जीववाले वृक्ष जानना चाहिये | इस तरह अनन्तजीववाले वृक्ष कहे गये हैं ।
टीकार्थ- पहले द्वितीय उद्देश में अभिरिवोधिक ज्ञान आदिका निरूपण पर्यायकी अपेक्षासे किया गया है - ज्ञानसे वृक्षादिक अर्थ-पदार्थ जाने जाते हैं इसलिये इस तृतीय उद्देशक में ज्ञान के विषयभूत वृक्षविशेषों की प्ररूपणा करने के लिये सूत्रकार कहते हैंइसमें गौतम स्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'कड विहाणं अते ! रुक्खा पण्णत्ता' हे भदन्त ! वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोमा ' हे गौतम! 'तिहा मक्खा पण्णत्ता' वृक्ष तिन प्रकार के कहे गये हैं ! ' तं जहा ' वे इस तरह से हैं - ' संखेज्जजीविया, अस खेज्जजीविया, अनंतजीविया ' संख्यात जीववाले, असंख्यात जीववाले, और अनन्तजीववाले । संख्यात जीव जिनमें होते हैं वे सख्यात जीवी हैं- सख्यात जीवीही પ્રમાણે અહીં પણ જાણવુ આ પ્રમાણે જે બીજા વૃક્ષે છે તે પણુ અનન્તજીવવાળા વૃક્ષ ગણવા-જાણવા આમ અનંતજીવવાળા વૃક્ષ કહેલા છે
"
ટીકાથ ઃ- પહેલા બીજા ઉદ્દેશકમાં લિનિબેધિક જ્ઞાનાદિનુ નિરૂપણ પર્યાયોની અપેક્ષાથી કરવામાં આવ્યુ છે જ્ઞાનથી વૃક્ષાદિક અર્થ-પદાર્થો જાણી શકાવ છે તેટલા માટે આ ત્રીજા ઉદ્દેશકમા જ્ઞાનના વિષયભૂત થયેલા વૃક્ષવિશેષાની પ્રરૂપણા કરવા માર पृछ्यु छे : 'कविहाणं भत्ते !
सुत्रभर उद्धे छे }-साभा गौतम स्वामी प्रभुने
वृक्ष साहारा
कक्खा पण्णत्ता ' डे अन्त!
छु ' गोयमा 'डे गौतम! 'तिविहा रुक्खा पण्णत्ता
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C त जहा ' ते या प्रभा
जीविया '
सा है ? तेना उत्तरमा प्रभु
" ઝાડના ત્રણ પ્રકાર છે संखेज्जजीविया, असंखेज्जजीविया, अनंत સખ્યાત જીવવાળા, અસ ખ્યાત વાળા અને અન તજીવવાળા એમ ત્રણ