________________
भगवती सूत्रे
५४६
तद्यथा - निम्ब-आम्र-जम्बू एवं यथा मज्ञपनायां यावत् फलानि बहुवीजकानि, तदेतानि वहुवीजकानि तदेते असंख्येयजीविकाः, तत् किंते अनन्तजीविकाः १ अनन्तजीविकाः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - आलूकम्, मूलकम, श्रृङ्गवेरम्, एवं यथासप्तमशतके यावत् सिंहकर्णी मिउण्डी, मुमुण्ढी, ये चाप्यन्ये तथा प्रकाराः, तदेते अनन्तजीविकाः । सू. १ ॥
वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं ? ( एगट्टिया अणेगविहा पण्णत्ता) हे गौतम! एक बीजवाले वृक्ष अनेक प्रकारके होते हैं (तंजहा) जैसे- (निवं- ब जम्बु एवं जहा पनवणापर जाव फला बहुबीयगा से तं बहुवीयगा) नीम, आम्र, जामुन इत्यादि प्रज्ञापना सूत्रके प्रज्ञापना पदमें कहे गये अनुसार बहुबीजवाले फल तक जानना चाहिये । इस तरह ये बहुबीजवाले वृक्ष हैं (से तं असंखेज्जजीविया) यहां तक असंख्यात जीववाले वृक्षोंका वर्णन किया (से किं तं अनंतजीविया) हे भदन्त ! अनन्त जीववाले वृक्ष कितने प्रकारके कहे गये हैं ? (अनंतजीविया अणेगदिहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! अनन्त जीववाले वृक्ष अनेक प्रकारके कहे गये हैं । (तं जहां) जैसे- (आलुए, मूलए, सिंगवेरे, एवं जहा सन्तमसए, जाव सीउण्हे, सिउंदी, मुसंडी, जे यावन्ने तहप्पगारासेत अनंतजीविया) आलू, मूली, अदरख, इत्यादि जैसा कि सप्तम शतक में यावत् मिउढी, सुसुढी तक कहा गया है- वैसा ही यहाँ पर जानना चाहिये । इसी तरहके जो और वृक्ष हैं वे भी अनन्त एगडिया अगवा पण्णत्ता' हे गौतम! मे श्रीवाना वृक्ष भने अारना હાય છે तं जहा ' ने 'निंबं वजंबु एवं जहा पण्णत्रणापए जावफला बहुवीयगा से बहुवीयगा ' भिडे, मांगो, लघु धत्याहि प्रज्ञापना सूत्रना પ્રજ્ઞાપના પદમા કહેવાઇ ગયા પ્રમાણે બહુબીજવાળા ફળ સુધી જાણવા. આવી રીતે આ महुमीनवाणा वृक्ष छे 'सेत्तं अस खेज्जजीविया' सहीं सुधी अस यात लववाणा वृक्षोनुं वर्शन यु' ' से किं तं अनंतजीविया ' हे लहन्त | अनंत लववाजा वृक्षना डेंटला प्रहार छे ? ' अनंतजीत्रिया अणेगविहा पण्णत्ता 3 हे गौतम ! भ्भन्नतलववाणा वृक्ष भने अझरना छे. 'तं जहा ' ? मूलए, सिंगवेरे, एवं जहा सत्तमसए, जान मुसंडी, जे यावन्ने तहप्पगारा से त अनंतजीविया
6
, भालू, भूजा, माहू
પ્રત્યાદિ જેવાકે સાતમા શતકમાં-યાત્ સિઉંઢી, મુસુંઢી સુધી કહેવાઇ ગયું છે – તે
२
6
म
सीउण्हे,
आलुए, सिउ ढी