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________________ १८२ भगवतीमु यदि एकेन्द्रिय यावत् अवायुकायिकैकेन्द्रिय यावत् परिणतं वा, पञ्चेन्द्रिय यावत् परिणतं वा । परिणत किं वायुकायिकै केन्द्रिय यावत् - परिणतम् यावत् परिणतम् ? गौतम ! वायुकायिकैकेन्द्रिय यावत् परिणतम् नो अवायुकायिक- यावत् - परिणतम् । एवम् एतेन अभिलापेन यथा अवगाहनासंस्थाने वैक्रियशरीरं भणितं तथा इहाऽपि भणितव्यम् यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिककल्पातीतकवैमानिक देवपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतं वा, अपर्याप्तकसर्वोर्थसिद्ध॰कायप्रयोगपरिणतं वा ।। सू० १५ ।। वैक्रियशरीरका प्रयोगसे भी परिणत होता है पंचेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकायप्रयोग से भी परिणत होता है । ( जइ एगिंदिय जाव परिगए किं वाक्काय एर्गिदिय जाव परिणए, अवाउक्काइय एगिंदिय जाव परिणए) यदि वह एकेन्द्रियके वैक्रियशरीरकाय प्रयेोगसे परिणत होता है तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियके वैक्रियशरीर कायप्रयोग से परिणत होता है या जो अवायुकायिक एकेन्द्रिय हैं उनके वैक्रियशरीरका प्रयोगसे परिणत होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( बाउकाइय एगिंदिय जाब परिणए, नो अवाउक्काइय जाव परिणए) वह द्रव्य वायुकायिक एकेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकायप्रयोग से परिणत होता है अवायुकायिक एकेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोगसे परिणत नहीं होता है । ( एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेडव्यिसरीरं भयंता इह विभाणियव्वं ) इस तरह इस अभिलापसे प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहना संस्थान पद में वैक्रिय शरीर के संबंध में जैसा कहा गया है પણ પરિણત હાય છે, હીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પચેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાયप्रयोगथा पशु परिणत होय छे. (जड एर्गिदिय जाव परिणए किं वाउक्काइय् एगिदिय जाव परिणए, अवाक्काय एगिंदिय जाव परिणए ? ) ले त એકેન્દ્રિયના વૈક્ટિશરીરકાયપ્રયોગથી પરિષ્કૃત હૈાય છે, તેા શુ' તે વાયુકાયિક એકેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાય પ્રયાગથી પરિણત હાય છે, કે જે અવાયુકાયિક એકેન્દ્રિય છે તેમના वैडियशरीरऽायप्रयोगथा परिणत होय छे ? ( गोयमा ) डे गौतम । वाउक्काइय एगिंदिय जाव परिणए, नो अवाउक्काइय जाव परिणए ) તે દ્રવ્ય વાયુકાયક એકેન્દ્રિયશરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત હોય છે, અવાયુકાયિક એકેન્દ્રિયના વક્રિયશરીરકાયપ્રયોગથી परिणत होतुं नथा ( एवं एएवं अभिलावेणं हा ओगाहण संठाणे वेउन्त्रिय सरोरं भणियं तहा इह वि माणियन्त्र ) मा राते या अभिसाप द्वारा प्रज्ञापना સૂત્રના અવગાહના સ્થાન પદમા વૈક્રિય શરીર વિષે જે પ્રમાણે કહ્યુ છે, એજ પ્રમાણે
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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