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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ स. १५ सूक्ष्मपृथ्वीकाय स्वरूपनिरूपणम् १८१
मूलम् - जड़ वेउद्वियसरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिंदियउaियसरीरकायप्पओगपरिणए जाव-पंचिंदियवे उद्द्वियसरीर- जाव परिणए ? गोयमा ! एगिंदिय - जाव परिणए वा, पंचिंदिय - जाव परिणए वा । जइ एगिंदिय- जाव परिणए किं वाउक्काइए गिदिय- जाव - परिणए, अवाउक्काइयए गिंदिय - जाव परिणए ? गोयमा ! वाउक्काइए गिंदिय- जाव परिणए, नो अवाउक्काइयजाव - परिणए । एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेaियसरीरं भणियं तहा इहवि, भाणियां, जाव पज्जत्त सबट्रसिद्धअणुत्तरोववाइयक पाईयवेमाणियदेव पंचिदियवे उद्वियसरीरकायपओगपरिणए वा, अपजत्तसवड सिद्ध० कायप्पओगपरिगए वा ॥ सू० १५ ॥
छाया - यदि वैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतं किम् एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीरकायप्रयोगपरिणतं यावत् पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीर यावत् - परिणतम् ? गौतम ! एकेन्द्रिय
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'जड़ वेडव्वियसरीरकायप्पओगपरिणए' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - (जइ वेउन्विय सरीरकायप्पओगपरिणए कि एर्गिदियवेउविसरीरकायप्पओगपरिणए जाब पंचिदियवेव्विसरीर जाव परिण) हे भदन्त ! जो द्रव्य वैक्रियशरीर कायप्रयोग से परिणत कहा गया है, वह क्या एकेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकायप्रयोग से परिणत होता या यावत् पंचेन्द्रियके वैक्रियशरीरकाय प्रयोग से परिणत होता है ? (गोमा) हे गौतम! (एनिंदिय जाव परिणए वा) वह एकेन्द्रियके
66 जइ वेउन्त्रिय सरीरकायप्पओगपरिणए " प्रत्याहि
सूत्रार्थ - जइ वेउच्चियसरीरकायप्पओगपरिणए, कि रगिंदिय वेउब्जिय सरीर जाव परिणए ? ) हे अहन्त ! द्रव्य वेडियशरीरायप्रयोगयी परिणत होय छे, તે શુ એકેન્દ્રિયના વૈયિશરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત હોય છે કે પચેન્દ્રિય પર્યંન્તના वैश्यिशरीरायप्रयोगथी परणित होय हे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! (एगिंदिय जाव परिणए बा, पंचिंदिय जाव परिणएवा) ते द्रव्य मेडेन्द्रियना वैक्यिशरीराय प्रयोगथी
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