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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ १५ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १८३
टीका-गौतमः पृच्छति-'जइ वेउब्धियमरीरकायप्पओगपरिणए कि एगिदिय वेउन्धियसरीरकायप्पओगपरिणए जार पंचिंदियवेउन्चियसरीर-जाब-परिणए ?' हे भदन्त ! यद् द्रव्यं वैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतं तत् किम् एकेन्द्रियबैंक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतं भवति ? यावद-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पश्चेन्द्रिय वैक्रियशरीर यावत्- कायप्रयोगपरिणत भवति ? भगवानाह-गोयमा ! एगिदियवैसा ही यहां पर भी कहना चाहिये । (जाव पजत्त सम्बठ्ठसिद्ध अणुत्तरोववाडय कप्पाईय वेमाणिय देवपंचिंदिय वेउन्धिय सरीरकायप्पओगपरिणए वा, अपजत्त सव्वदृसिद्ध० कायप्पओगपरिणए वा) वैक्रियशरीर कायप्रयोगसे परिणत वह द्रव्य यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोगसे भी परिणत होता है और अपर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरीपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय के वैक्रिय शरीर प्रयोग से परिणत भी होता है।
टीकार्थ- गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि 'जइ वेउब्वियसरीर कायप्पओगपरिणए किं एगिदियवेउब्वियसरीरकायप्पओगपरिणए जाव पंचिंदियवेउब्विय सरीर जाव परिणए' हे भदंत ! जो पुद्गल द्रव्य पहिले वैक्रिय शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता कहो गया हैसो क्या वह एकेन्द्रिय जीव के वैक्रिय शरीर कायप्रयोग से परिणत होता है ? या यावत्-दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोग से परिणत होता है ? इसके उत्तरमें प्रभु माही प ४ नध्ये (जाव पन्जन सवसिद्ध-अणुत्तरोक्वाडय-कप्पाईय वेमाणिय देवपंचिंदियवेउब्बियसरीरकायप्पओगपरिणए वा, अपजत्त सचट्ट सिद्ध० कायप्पयोगपरिणए वा ). वैयि।२४।यप्रया परिणत ते द्रव्य, यावत પર્યાપ્તક સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તરપપાતિકકલ્પાતીત વૈમાનિક દેવપચેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાયપ્રોગથી પરિણત પણ હોય છે અને અપર્યાપ્તક સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તરપપાતિક કલ્પાતીત વૈમાનિક દેવપચેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાયપ્રગથી પણ પરિણત હોય છે.
- गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे । 'जेड वेउब्धियसरीरकायप्पागपरिणए, कि एगिदियवेउब्धियसरीरकायापओगपरिणए जाव पंचिदियवेडब्धियसरीर जाव परिणए ?" :-11 द्रव्य यसरी२४५પ્રોગથી પરિણત થયેલું કહેવામાં આવ્યું છે, તે શું એકેન્દિવ્ય જીવના વૈશ્ચિયશરીરકાય