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अमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ, १ तिप्यकाणगारविषये गौत्तमस्य प्रश्नः ८९ पतिकान्तः, समाधिमाप्तः कालमासे कालं करवा सौधर्मे कल्पे स्वस्मिन् विमाने उपपातसभायां देवशयनीये देवयान्तरितोऽङ्गलस्य असंख्येयभागमात्रायाम् अवगाहनायाम् शक्रस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य सामानिकदेवतया उत्पन्ना, ततः स तिप्यको देवोऽधुनोपपन्नमात्रः सन् पञ्चविधया पर्याप्त्या पर्याप्तिभावं गच्छति, वधया-आहारपर्याप्त्या, शरीर-पर्याप्या, इन्द्रिय-पर्याप्त्या, आन-माणपर्याप्त्या, प्रतिमम करके (ममाहिपत्त) समाधि प्राप्त होकर (काल मासे कालं किचा) काल मासमें काल करके (सोहम्मे कप्पे) सौधर्मकल्पमें (सयंसि विमाणसि) अपने विमानमें (उपवायसभाए देवसयणिसि) उपपात सभाके देवशयनीय (शय्या) में (देव दूसंतरिए) देवदृष्यसे अन्तरित होकर (अंगुलस्स असंखेजइ भागमेत्ताएं ओगाहणाए) अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाणवाली अवगाहनामें (सफस्स देविंदस्स देवरपणो सामाणिय देवत्ताए उववनो) देवेन्द्र देवराज शके सामाणिक देवके रूपम उत्पन्न हुए है। (तएणं से तीसए देवे अहुणोववन्नमेत्ते समाणे) अधुनोपपन्न मात्र वे निप्यकदेव (पंचविहाए पजत्तीए पजत्तिभावं गच्छद) वहां पर पांच प्रकारकी पर्याप्तियोंसे प्रयाप्तिभावको माप्त हए हैं। (तंजहा) वे पांच प्रकारकी पर्याप्तियां इस भकार से है- (आहारपज्जत्तीए, सरीरपजत्तीए, इंदियपजत्तीए, आणपाणपजत्तीए, भासामणपज्जतीए) आहारपर्याप्ति, शरीर(आलोइयपडिक्कते ) या प्रतिभा शन(समाहिपत्ते) समाधि पाभीर (कालमासे काल किच्चा) anellan ससाना समय मा०ये त्यारे ॥
म पाभी ( सोहम्मे कप्पे ) सौधम भi( संयंसि विमाणसि ) ताना (मानमा ( उववायसभाए देवसयणिज्जसि ) 6पासनी शय्यामा वसंतरिए ) हेय (हे परथी ) 0ld यईने अंगुलम्स असंखेज्जइ भागमेत्ताए ओगाहणाए ) अशाना असण्यातभा मा प्रभावामी नामा ( सशस्स देविंदम्स देवरपणो देवत्ताए उववन्ने) ३१२१४, देवेन्द्र राना सामान ६५३५ Sपन्न ये 2. ( तएणं से तीसए देवे अहणोववन्नमेत्ते समाणे) ७० in 4 येततिप्य: (पंचविहाए पज्जत्तीए एज्जत्तिभावं
છે ) ત્યાં પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિઓથી પર્યાપ્ત અવસ્થા પામ્યો છે તંદા તે પાંચ ययातिय नाय प्रमा- (आहारपज्जत्तीए ) मा पाक्ति, शरीरपज्जत्तीए शरीर पति (इंदियपज्जनीए) चन्द्रिय पारित, (आणपाणपज्जत्तीए) यासापास पर्यान्ति, ( भासामणपज्जत्तीए) सापाभन पति शते