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________________ भगवतीसूत्रे छाया - यदि भदन्त ! शक्रो देवेन्द्रः, देवराजः एवं महर्दिकः यावत्-एतानच प्रभुः विकुर्वितुम् एवं खलु देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासी तिष्यको नाम अनगारः प्रकृतिभद्रकः, यावत्- विनीतः पप्ठं पष्ठेन अनिक्षिप्तेन तपः कर्मणा आत्मानं भावयन् बहुमतिपूर्णानि असंवत्सराणि श्रामण्यपर्यायं पालयित्वा मासिक्या संलेखनया आत्मानं जूपित्वा, पष्टि भक्तानि अनशनेन छिवा, आलोचित ८८ 'जइणं भंते! सफे देविदे' इत्यादि । सूत्रार्थ (जणं भंते!) हे भदंत 1 यदि (देविंदे देवराया) देवोंके इन्द्र देवराज (स) शक्र ( एवं महिडीए) ऐसी पडी ऋद्धिवाले है (जाव एवतियं चणं पभू विउच्चित्तए) यावत् वे इतनी विर्षणा करने के लिये शक्तिशाली हूँ तो ( एवं खलु देवाणुवियाणं अंतेवासी) आप जो (तीसए नाम अणगारे) तिष्यक नामके अनगार हुए हैं, कि जो ( पग भद्दे ) प्रकृति से भद्र थे (जाव विणीए) यावत् विनीत थे (छ छट्टेणं आणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं) और निरन्तर छह छकी तपस्या से ( अप्पाणं भावे माणे ) जो अपनी आत्माको भावित करते रहते थे ( हु पडिपुण्णाई अट्ठसंवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता) ठीक वे आठ वर्ष तक श्रामण्य पर्यायका पालन करके, एवं १ एकमास की संलेखनासे अपने आपको युक्त करके, साठ भक्तका अनशन द्वारा। छेदन करके (आलोइयपडिकते) आलोचना, — तिष्यः नामना सामानि हेवनी समृद्धि माहिनु पार्थेन-इ सक्के देविंदे " धत्याहि--- सूत्रार्थी - (जरण भंते ! देविंदे देवराया सक्के एवं महिडीए जाव एवति चणं भू विउच्चित्तए) है लहन्त । ले हेवराय, देवेन्द्र शर्ट सारखी અધી સમૃદ્ધિ આદ્રીથી યુક્ત છે, અને જો તે આટલી બધી વિશા શકિત ધરાવે છે તે ( एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी) पछी माप हेवानुप्रियना शिष्य (तिसए नामं अणगारे ) तिष्य नामना अनुशार (पगइभद्दे) ने भद्र प्रकृतिना हता. (जाव विणीए ) अने विनीत पर्यन्तना गुवाजा हता, छूटुं छणं अणिक्खितेणं तत्रो कम्मेणं) ने निरंतर छहना पारो छठ्ठन तपस्या वडे (अप्पाणं भावे माणे) घोताना आत्माने भावित उरता उता, ( बहुपडिपुण्याई असंवच्छराई सामण्णपरियागं पाखणित्तो मासिआए संलेहणाए अत्ताणं झसिता नेमले माह वर्ष સુધી શ્રામણ્ય પર્યાયનું પાલન કર્યું" હતુ અને એક માસના સોશ કરીને સાઠે ભકતે અનશન દ્વારાછેદન કરીને એક માસના સાઠે ટકના ભાજનના ઉપવાસદ્વારા ત્યાગ કરીને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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