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________________ ५१२ यथा - विश्वमेकं सत् अविशेषादिति । तथा द्रव्यत्वादीन्यवान्तरसामान्यानि मन्वानस्तद्भेदेषु गननिमीलिकामवलम्बमानोऽपरसंग्रहः, यथा - धर्माधर्माकाश काल पुलजी द्रव्याणामैक्यं द्रव्यत्वाभेदादिति । इति द्वितीयो नयः २ । तथा-व्यवहारः-व्याहरणं, व्यवहरतीति वा व्यवहारः, व्यवह्नियते = अपलप्यते सामान्यमनेनेति वा व्यवहारः, विशेषान् वा आश्रित्य व्यवहारपरो नयो व्यवहारः । तदुक्तम् "वहरणं वरए, स तेण बवहीरए व सामन्नं । 59 वापरो यजओ, विसेसओ तेग बवहारो ॥ १ ॥ स्थानाङ्ग छाया - व्यवहरणं व्यवहरते स तेन व्यवहियते वा सामान्यम् । व्यवहारपरश्च यतो विशेषतस्तेन व्यवहारः ॥ १ ॥ इति । परसंग्रहनन है, जैसे- सन् की अविशेषता से यह विश्व एक सत्ता रूप है ऐसा कथन तथा-जो संग्रह-द्रव्यत्व आदि अवान्तर सामान्यों को मानना हुआ उनके भेदों में गजनिमीलिका - उपेक्षा भाव रखता है उन्हें गौण करता है वह अपर संग्रहनय है, जैसे- द्रव्यत्व रूप अवा तर सामान्य की अविशेषता से अभेद से धर्म, अधर्म, आकाश, काल पुल और जीव इन सब में एकता है ऐसा कथन करना. २ संग्रहनय के विषयभूत सामान्य में भेद का कथन करने वाला जो नय है वह अथवा सामान्य का अपलाप करनेवाला जो नय है वह व्यवहार नय है, अथवा विशेषों को लेकर वस्तु को व्यवहारपथ में लाने वाला जो नय है-वह व्यवहार नय है कहा भी है " ववहरणं ववहरए ' इत्यादि । - 39 આ જે સ'ગ્રહનય દ્રવ્યત્વ આદિ અવાન્તર સામાન્યાને માનતા થા તેમના ભેદમાં ગનિમીલિકાભાવ (ઉપેક્ષા ભાવ ) રાખે છે, તેમને ગૌણ માને છે, તે સગ્રનયને અપર સંગ્રહનય કહે છે. જેમકે—“ અભેદની અપેક્ષાએ ધમ, अधर्म, आाश, आज, युगल मनेत्र से धामां मेड़ता छे, પ્રકારનું કથન સંગ્રહનેયના વિષયભૂત સામાન્યમાં ભેકનુ કથન કરનારા જે નય છે તેને વ્યત્રહારનય કરે છે અથવા સામાન્યને અપલાપ કરનારા જે નય છે તેને ન્યત્રહારનય કહે છે અથવા વિશેષાના આધાર લઈને વસ્તુને વ્યવહારપથમાં લાવનારા જે નય છે તેને ગૃલ્હારનય કહે છે. पछे " वषहरणं ववद्दरए " त्याहि
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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