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स्थानावसूत्रे
दम्पायन्य वन एथनिकृनो निर्भया निरोग तथा मिनादिरूपैःपञ्चभिः
कामिनि न्यीगि सार्द्धम्
श्री नावि स्यानानिप्रद तद्यथा-सिमचितः = चन्दन तिम्पदिनः श्रमणो निर्धन्य इतरेषु इत्येव यमानेषु मनमनर्थकता विरा काजी काव्यानेन गन-पाठेन दृप्तजिला के माने जाते हैं। यह अपवाद सूत्र हैराण में निर्यन्त्र निर्मथिनियों को एक जगह निशा से करनेवाला नहीं कहा गया है, इसी दिनादिकारणों से अल-चस्त्ररहित साधु निर्वाचनका निर्गन्धनियों के साथ रहता हुआ भी की आप का प्रतिकमण करनेवाला नहीं होता है। वे पांच नेमणे निरांचे " इत्यादि-अनवन है, अस्तव्यस्त हो रहा है, विगतवन्त्र हो गया है, वस्त्रतर निों की अग्रि
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