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________________ . स्थानाङ्गले अयायान्तरमूत्रद्वयम्यापि उपक्रमोपसहावाक्यमेव व्याख्येयम् । तत्र प्रथमापान्तरमृत्रोक्तानि पञ्चस्थानान्येतानि, तथाहि-नित्यत्तुंका-नित्यं सर्वदा न तु दिन मे । ऋतु रक्तनिरूपो यस्याः सा १, तथा-अनृतुका-न विद्यते ऋतु. यस्याः मा २ नया-व्यापन त्रोता:-यापन्न गोगादिना प्रतिहत स्रोतागर्माप्रचि यस्याः मा ३, तया-व्याविस्रोता:-व्याविद्धवातादिना व्याप्तत्वेन महनगनिक घोतो यस्याः मा ४, नया-अनङ्ग पति से विनी-अनं-मैथुनोपयोगि है, तो भी गर्भवती नहीं हो सकती है, ऐसा अर्थ होता है, अतः इस मरद के इन पांच कारणोंसे पुरूपके साथ संगम करती हुई भी स्त्री गर्भ धारण नहीं कर सकती है यह प्रकट किया, अब और भी गर्भ धारण नहीं करनेके जो कारण हैं, मूत्रकार उन्हें प्रकट करते हैं, इनमें प्रथम कारण नित्यर्तुक है, जिसके तीन दिन तकही ऋतुधर्म नहीं रहता है-किन्तु सदाही रज प्रवाहित होता रहता है, ऐसी यह श्री गर्भवती नहीं हो सकती है, तथा जो अन्तुक है, ऋतुधर्मसे रहित है, यह भी गर्भवती नहीं हो सकती है, जो व्यापन्न स्रोता है, वह भी गर्भवती नहीं हो सकती है, अर्थात् रोगादिकसे जिसके गर्भाशयका छिद्र चन्द हो गया हो प्रतिहत हो गया हो ऐसी वह स्त्री भी गर्भ धारण करने में असमर्थ होती है। जिसका वातव्याधि आदिसे व्याप्त होने के कारण गर्भाशयका छिद्र गर्भ धारण करने की शक्तिसे रहित कर दिया गया हो ऐसी वह भी स्त्री गर्भ धारण नहीं कर सकती આવે, તે તેનો અર્થ આ પ્રમાણે પણ થાય છે-જે તે શેકદિથી યુક્ત હેય તે પશુ ગર્ભવતી બની શકતી નથી. ગર્ભ ધ રણ ન કરી શકવાના બા પણ કેટલાક કારણો છે, તે સૂત્ર४२ ४३ ५४८ ४२ 2-" नित्यतुं क " श्रीन महिनामा त्राहिस सुधी २४ ચાવ ઘતે નથી, પણ કાયમ રજસ્રાવ ચાલુ રહે છે, તે સ્ત્રી ગર્ભવતી नीती नथी. (२) अन्तुक" २ श्री तुमयी २क्षित डाय छे, तेने ५६, न ही शत नयी (3) " व्यापनस्रोता " शानि ॥२२ रे સ્ત્રીના ગર્ભાશયનું કિ બધ થઈ ગયું હોય છે, તે સ્ત્રી પણ ગર્ભ ધારણ કરી શક નથી (૪) ઈ વ્યાધિને કારણે (વાત વ્યાધિ આદિને કારણે) જેના ગર્ભાશયના છિદ્રને ગર્ભ ધારવુ કરવાને અસમર્થ કરી નાખવામાં આવ્યું કેય, ને બી પણ ગર્ભ ધારણ કરી શકતી નથી, (૫) જે સ્ત્રી મૈથુન સેવનના
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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