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सुधा टीका स्था०४ उ०२ सू०३३ विकथास्वरूपनिरूपणम् ६९ ___ " रायकहा चउबिहा" इत्यादि-राजमथा चतुविधा मज्ञप्ता, तद्यथा-राज्ञोऽतियानकथा-राज्ञः-अतियानं-नगरादौ प्रवेशः, तस्य कथा अतियानकथा १, तथा-राज्ञो निर्याणकथा-निर्याणं-नगराद् निःसरणं, तस्य कथा निर्याणकथा २, राज्ञो वलवाहनकथा-वलं हस्त्यादि, वाहनं-वेसरादि, तदुभयकथा बलवाहनकथा३,
राज्ञः कोशकोष्ठागारकथा-कोशः-निधिः-सुवर्णादिभाण्डागार, कोष्ठं कुम्लादि, तद्रूपमगारं धान्यागारमित्यर्थः, तदुभयकथा कोशकोष्ठागारकथा ४। इह चारकचोरादिशङ्कास्पा अनेके दोपा भवन्ति, उक्तं च"हियत्थस्स भवे चोरो, मारियस्स णु हिंसगो। '
रहस्सभेदगो वेनो, इह संका पजायए । १ ।। छाया-" हृतार्थस्य भवेच्चौरो, मारितस्य तु हिंसका।
रहस्यभेदको वाऽय-मिति शङ्का मजायते ।१।" इति । विहा"-इत्यादि-राजकथा चार प्रकार की कही गई है-जैसे-राजा की अतियान कथा-१ राजा की निर्याण कथा-२ राजा की बलवाहन कथा-३ राजा की कोठागार कोष कथा-४ इन में राजा के नगर आदि में प्रवेश करने की जो-कथा है बह-राजा की अतियान कथा है-१ राजा के नगर से बाहर निकलते समय की जो कथा है वह-राजा की निर्याण कथा है-२ राजा के वल-सैन्य-की वाहन-हस्त्यादि की, तथा-दोनों बल-वाहनों की कथा करना यह राजा की बल वाहन कथा है-३ राजा के स्तुवर्णादि भाण्डारकी एवं-धान्यागारकी कथा तथा इन दोनों की कथा करना सो यह-राजा की कोष्ठागार कथा है-४ । यहां-चारक चोर आदि शङ्का रूप अनेक दोष होते हैं। उक्तञ्च"हियत्थरस भवे चोरो"-इत्यादि । " धम्मकहा चउचिहा. " रायकहा चउव्विहा " त्याह-२४४था या२ ५३१२नी ही छ-(१) रानी मतियान 31, (२) रानी.नियार , ४थ!, (3) २inनी मसवाहन કથા, (૪) રાજાની કેષાગાર કેષ કથા. (૧) રાજાના નગર પ્રવેશ વિષયક કથાને “ રાજાની અતિયાન કથા” કહે છે. (૨) રાજા નગરની બહાર વિજયાદિ नभित्तर प्रयाण ४२ छ तनी थाने 'तनी.निया था। . छ. (3) રાજાના સૈન્ય, હાથી, ઘોડા આદિ વાહન અથવા બનેની (બલ વાહનની) કથા કરવી તેનું નામ “ભલવાહન કથા છે. (૪) રાજાના સુવર્ણાદિ કષની ધાન્ય ભંડારની કથાને “કેકાગાર કષ કથા ” કહે છે. અહીં ચારક (ચેર) माहि श३५ भने होप डाय छे. ४ह्यु ५ छ -
" हियत्थरस भवे चोरो" त्यादि