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________________ सुधी टीका स्था०४ उ० १ सू० १८ पुरुषस्वरूपनिरूपणम् अपणो णामभेगे वज्रं उबसामेइ णो परस्स० ४ ४| चचारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -अब्भुट्ठेइ णाममेगे अट्ठाइ ४ । ५ एवं वंदइ णाममेगे णो वंदावेइ ४ ६। एवं सकारेइ ७, सम्मा ८, पूएइ ९, वाइ १०, पुच्छर १२, पडिपुच्छइ १२, वागts १३. सुन्धरे णाममेगे णो अत्थधरे १ अत्थधरे णाममेगे णो सुत्तधरे २, सुत्तधरे णाममेगे अत्थधरे वि ३, णो सुत्तधरे णामगे णो अत्थरे व ४| १४| || सू० १८॥ छाया - चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - आपातभद्रको नामैकः संवासभद्रकः १, संवासभद्रको नामैको नो आपातभद्रकः २, एक आपातभद्रको-संवाभद्रोऽपि ३, एको नो आपातभद्रको नो वा संवासभद्रकः ४ १ चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - आत्मनो नामैकोऽयं पश्यति नो परस्य २, परस्य नामैकोऽवद्यं पश्यति नो आत्मनः २, आत्मनो नामैकोऽवद्य पश्यति परस्यापि ३, आत्मनो नामैhisar न पश्यति नो परस्यापि ४ । २ । ५०१ पुरुष अधिकार को लेकर ही अब सूत्रकार अन्य प्रकार से १४ पुरुष सूत्रों का कथन करते हैं- " चतारि पुरिलजाया पण्णत्ता" इत्यादिमुत्रार्थ- पुरुषजात चार कहे गये हैं जैसे आपात भद्रक संवास भद्रक १ संवासभद्रक नो आपात भद्रक २ आपात भद्रकभी संवासभद्रकभी ३ औरनो आपातभद्रक नो संवासभद्रक ४ । ( प्रथम ) १ चार पुरुषजात कहे गये हैं, जो अपना अवय-पाप देखता है, पर का नहीं - १ जो दूसरों का अवय देखता है अपना नहीं - २ जो अपना भी दूसरों का भी अवध પુરુષ અધિકાર ચાલુ છે, તેથી સૂત્રકાર હવે પુરુષ વિષયક ૧૪ સૂત્રેાનુ' निश्णु रे छे - " चचारि पुरिसजाया पण्णत्ता ” इत्यादि पुरुषाना यार प्रहार उद्या -- (१) भाषात बद-नो सवास लगड, (२) संवास भद्र-नो आायात लग४, (3) आायात_लगड - संपास लटू भने (४) नो आयत लगड - तो सवास लग । १ । નીચે પ્રમાણે પણ ચાર પ્રકારના પુરુષા કહ્યા છે—(૧) પાતાના અવદ્ય ( याय) ने लेनार-मन्यना पायने नहीं लेनार, (२) अन्यतु पाय नेनार, પેાતાનુ' નહીં જોનાર; (૩) પેાતાનું પાપ પણુ જોનાર અને અન્યનું પાપ સુ
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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