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४८२ - "जाव वेमाणियाणं " इति-वैमानिकपर्यन्तं तत्तद्दण्डकं पठनीयम् ।
" एवमेक्केक्के पदे " इत्यादि-एवम्-उक्तपकारेण यथाऽचिन्वन्नादिपघटित तत्तद्दण्डकत्रयमुक्तं तथा अवध्नन्नादिपघटितमपि तत्तद्दण्डके पठनीयम् , एतदेव स्पष्टयति-" एकेके पदे " इत्यादिना, एकैकस्मिन् प्रत्येकम्, इत्यर्थः, अयं भाव:" अवनन् " इति पदे योजिते सति त्रीणि दण्डकानि, पुनः 'बध्नन्ति' इति पदे योजिते सति त्रीणि दण्डकानि । तथा ' भत्स्यन्ति ' इति पदे योजिते सति जीणि दण्डकानि, अनेन क्रमेण · उदैरयन्, उदीरयन्ति उदीरयिष्यन्ति ' इत्यादि भूतवर्तमानभविष्यत्कालिकतत्तत्मयोगयोजनयैकस्मिन्नेकस्मिन् पदे त्रीणि हुई है, सर्वनिर्जरा नहीं गृहीत हुई है। क्यों कि-चतुर्विशति दण्डकों में इस निर्जरा का असद्भाव है। " जीव वेमाणियाण " वैमानिक पर्यन्त वह दण्डक पठनीय है।" एवमेकेक्के पदे-" जैसे-"अचिन्वन्"
आदि पद्घटित दण्डकत्रय कहे गये हैं वैसे ही "अबश्नन् " आदि पद्घटित भी दण्डकत्रय कल्पना से बनाना चाहिये। इसी का स्पष्टीकरण सूत्रकार अब " एक्के क्के पदे-" इत्यादि सूत्र द्वारा करते हैं, इसमें नन्हों ने कहा है कि-" अवनन्" इस पद को घोजित करने पर मान माया और लोभ सम्बन्धी पद के आधार पर भूतकाल को लेकर ३.३ दण्डक होते हैं। जैसे-जीवों ने मान से भूतकाल में अष्ट प्रकृतियों का वध किया हैं १ माया से इनका भूतकाल में बन्ध किया है २, और लोभ से इनका बन्ध भूतकाल में किया है ३। इस प्रकार से “अबગૃહીત થઈ છે, સર્વનિર્જર ગૃહીત થઈ નથી, કારણ કે ચોવીશ દંડના જીમાં સર્વનિ જેરાને સદ્ભાવ નથી.
" जाव वेमाणियाणं " वैमानि पय-तना मसानु ४थन य स. " एवमेक्केक्के पदे " म " अचिन्वन् " माह पटित ay ६.४ ४ामा माया छे, मेi “ अबध्नन् " माह पहरित ५५ अप ऋष्य ४.४ ४६५नाथ मनापी व न . १ पात सूत्र४१२ वे " एकक्के पदे ” छत्यादि सूत्रा द्वारा स्पष्टी४२१ ४२ छ___ या सूत्रपा द्वारा सूत्रा२ सभ ४ छ । “अवघ्नन् " मा पहने ચેજિત કરીને માન, માયા અને લેભ સંબંધી પદને આધારે ભૂતકાળની અપેક્ષાએ ત્રણ ત્રણ દંડક થાય છે. જેમકે (૧) જીએ માનને કારણે ભૂતકાળમાં આઠ કર્મપ્રકૃતિએને બન્ચ કર્યો છે. (૨) એ જ પ્રમાણે માયાના કારણે પણ તેમને ભૂતકાળમાં. બન્ધ કર્યો છે, અને (૩) લોભને કારણે પણ ભૂતआमा तना मन्च : छे. या प्रमाणे “ अबन्धन् ” मा भूत ३५