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________________ सुधा टीका स्था०३ उ ४ सू० ८१ समेदऋद्धिस्वरूपनिरूपणम् खलु दुरभिगमः प्रज्ञप्तः, एवं च सामर्थ्यात्माप्तं क्रमेण पर्यन्ताभिगम्यत्वात्, हे श्रमणायुष्मन् ! शिष्यामन्त्रणमेतदिति ॥ २८० ॥ २९७ पूर्वमभिसमागमः प्रोक्तः स च ज्ञानमेव ज्ञानं च ऋद्धिरूपमिति सभेदाम् ऋद्धिं प्ररूपयन् सप्तसूत्री माह - मूलम् - तिविहा इड्डी पण्णत्ता, तं जहा- देवड्डी रायड्डी गणिड़ी | १ | देविड्ढो तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- विमाणिड्डी विवणिड्डी परियारणिड्डी |२| अहवा देविडी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा सचित्ता अचित्ता सीसिया । ३ । राइड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा रनो अइयाणिड्डी, रन्नो निज्जाणिड्डी, रण्णो बलवाहकोसकोट्टागारिड्डी | ४ | अहवा राइ तिविहा पण्णत्ता, तं जहा सचित्ता अचित्ता मीसिया |५| गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा णाणड्डी दंसणिड्डी चरित्तिड्डी | ६ | अहवा गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा सचित्ता अचित्ता मीसिया ॥ ७॥ सू०८१॥ र्शन " पद से यहां केवलज्ञान केवलदर्शन इन दो का ग्रहण नहीं हुवा है, क्यों कि - " तत्प्रथमतायां " इत्यादिरूप जो कथन है उससे यही सिद्ध होता है कि केवलज्ञान तथा केवलदर्शन के होने पर आत्मा में इस प्रकार से उपयोग क्रमता नहीं होती है कि पहले वह उर्ध्वलोक के पदार्थों को जाने - बाद में तिर्यग्लोक के पदार्थो को जाने और फिर बाद अधोलोक पदार्थों को जाने, कारण कि उनले युगपत् त्रिकालगत तीन लोकगत पदार्थों का बोध होता है ॥ सु ८० ॥ - अधोबोट हुरलिगम उडेस छे, " 'ज्ञानदर्शन' च અહીં કેવળજ્ઞાન અને ठेवणहर्शन थडषु शये नथी, अरण ! "मतायां " धत्याहिરૂપ જે કથન છે તેના દ્વારા એજ સિદ્ધ થાય છે કે કેવળજ્ઞાન અને કેવળદન ઉત્પન્ન થાય ત્યારે આત્મામાં આ પ્રકારે ઉપયાગક્રમતા હૈાતી નથી. એટલે કે પહેલાં ઊલાકના પદાર્થીને જાણે, ત્યારબાદ તિયઞ્લાકના પદાનિ જાણું અને ત્યારમાદ અધેલાકના પદાર્થોને જાણે, એવું ખનતું નથી. પરન્તુ કેવળજ્ઞાન અને દેવળદર્શીન સપન્ન છત્ર તેા ત્રણે કાળગત અને ત્રણે લાકગત यहार्थेने भेङ साथै लागी राडे छे भने हेभी शडे छे. ॥ सु. ८० ॥ श ३८
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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