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स्थानाङ्गो ___ छाया-त्रिविधा ऋद्धिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-देवद्धिः, राजर्दिः, गणिऋद्धिः । १ । देवर्द्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-विमानद्धिः, विकुर्वणद्धिः, परिचारणद्धिः । २ । अथवा देवद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-सचित्ता, अचित्ता मिथिता ।३। राजद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-राज्ञोऽतियानदिः, राज्ञो निर्याणद्धिः, राज्ञो वलवाहनकोपकोष्ठागारद्धिः । ४ । अथवा राजद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता-तद्यथा-सचिंत्ता अचित्ता मिश्रिता । ५ । गणिप्रद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-ज्ञानद्धिः, दर्शनःि, चारित्रद्धिः । ६ । अथवा गणिऋद्धिस्त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-सचित्ता, अचित्ता मिश्रिता । ७ । सू० ८१ ॥
इस प्रकारसे अभिसमागमके सम्बन्धमें कथन किया यह अभिसमागम ज्ञानरूप ही होता है, और ज्ञान ऋद्विरूप होता है, अतः अय सूत्रकार सभेद ऋद्धि की प्ररूपणा सात सूत्रों द्वारा करते हैं “तिविहा इड्डी पण्णत्ता" इत्यादि।
सूत्रार्थ -- ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है जैसेदेवद्धि रोजद्धि और गणिऋद्धि, इनमें भी जो देवद्धि है वह भी तीन प्रकार की कही गई है, जैसे-विमानद्धि विकुर्वद्धि, और परिचारणद्धि, अथग-इस तरह से भी देवऋद्धि के तीन भेद है, सचित्त-अचित्त और मिश्रित ३ राजर्द्धि के भी तीन भेद कहे गये हैं, जैसे-राजा की अतियानद्धि राजा की निर्याणद्धि, राजा की बलवाहन कोष कोप्टागारद्धि ४ अथवा इस प्रकार से राजद्धि के तीन भेद कहे गये हैं, जैसे-सचित्त अचित्त और मिश्रित ५ गणिऋद्धि भी तीन प्रकार की कही गई है, जैसे ज्ञानद्धि दर्शनर्द्धि और चारित्रद्धि ६ अथवा इस प्रकार से भी - આ પ્રમાણે અભિસમાગમનું નિરૂપણ થયું તે અભિસમાગમ જ્ઞાન રૂપ જ હોય છે અને જ્ઞાન દ્વિરૂપ હોય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર સાત સૂત્ર દ્વારા *द्धिना हानी ५३५ -छ. “ तिविहा इड्ढी पण्णत्ता" त्याह
सूत्रार्थ-द्धि नरनी हीछे-(१) पद्धि, मन (3) गEि તેમાંની જે દેવદ્ધિ છે તેની નીચે પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર પડે છે-(૧) વિમાનરૂપ *द्धि, (२) वि!ि ऋद्धि मन (3) परियार! ऋद्धि.
वर्द्धिन मा प्रमाणे त्र ५४२ ५ ५ छ-(१) सथित्त, (२) मयित्त मन (3) मिश्रित.
જદ્ધિના પણ નીચે પ્રમાણે ત્રણ ભેદ કહ્યા છે-(૧) રાજાની અતિયાનદ્ધિ, (૨) રાજાની નિર્વાણદ્ધિ, (૩) રાજાની બલવાહન કેષ્ટાગારંદ્ધિ. અથવા રાજદ્ધિના नीय प्रमाणे त्रय ४२ प ५३ -(१) सचित्त, (२) मथित्त मन (3) मिश्रित,