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________________ सुंधा टीका स्था० ३ उ०४सू०७५ प्रत्यनीकस्वरूपनिरूपणम् २७७ छाया-गुरुं प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः पज्ञप्ताः, तद्यथा-आचार्यप्रत्यनीका, उपाध्यायपत्यनीकः, स्थविरप्रत्यनीकः ।। गति प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीका प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-इहलोकमत्यनाक', परलोकमत्यनीकः, द्विधातोलोकप्रत्वनीकः ।२। ममदं प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-कुलप्रत्पनीका, मगात्पनीका, संघमत्यनीकः ।३। अनुकम्पा प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीका प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-तपस्विप्रत्यनीकः, ग्लानप्रत्यनीकः, शैक्षप्रत्यनीकः ।४। भावं प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा ज्ञानप्रत्यनीकः, दर्शनप्रत्यनीकः, चारित्रप्रत्यनीकः।। श्रुतं प्रतीत्य त्रयः प्रत्य. नीका: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सूत्रप्रत्यनीका,अधमत्यनीयः, तदुभयप्रत्यनीका।म०७५।। ___टीका-'गुरुं ' इत्यादि मूत्रपटक सुगम, नवरं-'गुरु'-मिति, गृणातिअभिधत्ते तत्त्वमिति गुरुस्तं प्रतीत्य-आश्रित्य-प्रत्यनीकाः-प्रतिकलाः ते आचायोपाध्यायस्थविरभेदेन त्रयः प्रज्ञप्ताः । तत्राचार्योपाध्याय प्रत्यनीको तदवर्णवा. दिनौ । स्थविरो जात्यादिभि भवति तस्य प्रत्यनीका-प्रतिकूलः । स्थविरपत्य___कल्पस्थिति व्यतिक्रामक प्रत्यनीक (प्रतिकूल ) भी होते हैं, अतः अब सूत्रकार प्रत्यनीक प्रतिकूल रहने वालों के छह सूत्रों का कथन करते हैं-" गुरुं पडुच्च तओ पडिणीया-" इत्यादि । टोकार्थ-ये ६ सूत्र हैं, इनका अर्थ सुगम है फिर भी सूत्रकार ने इनमें यह प्रकट किया है-गुरू को लेकर प्रत्यनीक तीन होते हैं, जो तत्त्व का कथन करता है वह " गृणाति तत्त्वमितिगुरुः” तत्त्व समझाने वालेको गुरु कहते है। इस व्युत्पत्तिके अनुसार गुरु कहा गयाहै प्रत्यनीक शब्द का अर्थ प्रतिकूल रहना है ऐसे गुरुप्रत्यनीक आचार्यप्रत्यनीक उपाध्यायप्रत्यनीक और स्थविरप्रस्थनीक के भेद से ३ तीन प्रकार के कहे गये हैं। आचार्य और उपाध्याय का जो अवर्णवाद करता है वह ક૯પસ્થિતિ વ્યતિકામક પ્રત્યેની (પ્રતિકૂળ માણસ) પણ હોઈ શકે છે. તેથી હવે સૂત્રકાર પ્રત્યેનીક (પ્રતિકૂળ રહેનાર) ને અનુલક્ષીને છ સૂત્રેનું ४थन ४२ छ-" गुरुं पडुच्च तओ पडिणीया" त्याह આ સૂત્રનો અર્થ સુગમ છે, છતાં અહીં આ સૂત્રનો ભાવાર્થ પ્રકટ ४२वामां आवे छे-गुरुनी अपेक्षा प्रत्यनी साय छे " गृणाति तत्व. मिति गुरु " | युत्पत्ति अनुसार २ तत्वतुं ४थन ४२ छ तेने शुरु ४९ છે પ્રતિકૂળ રહેનારને પ્રત્યેનીક કહે છે. ગુરુ પ્રત્યેનીકના નીચે પ્રમાણે ત્રણ से ह्या है-(१) माया प्रत्यनी. (२) अध्याय प्रत्यानी मन (3) स्थविर પ્રત્યેનીક આચાર્યને અવર્ણવાદ કરનાર જીવને આચાર્ય પ્રત્યેનીક કહે છે અને ઉપાધ્યાયને અવર્ણવાદ કરનાર જીવને ઉપાધ્યાય પ્રત્યેનીક
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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