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अथ चतुर्थोद्देशकः प्रारभ्यते-- व्याख्यावस्तृतीय उवेशकः, अध चतुर्थः प्रारभ्यते, अस्य पूर्वोदेशकेन सहायमभिसम्बन्धः-तृतीयोद्देशके पुद्गलजीवधर्मास्त्रिस्थानकेनोक्ताः, अत्रापि त एवं त्रिस्थानकेन प्रोच्यन्ते । इत्यनेन सम्बन्धेनायातस्यास्येदमादिसूत्रम्-' पडिमापडिवनस्स' इत्यादि सूत्रपट्कम् । अस्यादि सूत्रस्य पूर्वमुत्रेण सहायं सम्बन्धः-पूर्वमूत्रे श्रमणमाहनस्य पर्युपासनायाः फलपरम्परा प्रोक्ता, श्रमणमाहनाश्चानगारा एवेत्यत्रानगारस्य कल्पविधिमाह
मूलम्-पडिमापडिवनस्स अणगारस्त कप्पंति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा-अहं आरामगिहंसि वा, अहे
तीसरे स्थानकना चौथा उद्देशक प्रारम्भतृतीय उद्देशा व्याख्यात हो चुका-अब चौधा उद्देशा प्रारंभ होता है इसका तृतीय उद्देशाके साथ संबंध ऐसा है कि तृतीय उद्देशामें पुद्गल
और जीव के धर्म तीन स्थान से कहे गये हैं इस उद्देशा में भी वे तीन स्थान से ही कहे जावेंगे इसी संबंध से आये हुए इस उद्देशा का यह "पडिमापडिवनस्स" इत्योदि प्रथम सूत्र छहसूत्रों से युक्त कहा गया है इस आदि के सूत्र का भी पूर्वसूत्र के साथ ऐसा संबंध है कि तृतीय उद्देशा के अन्तिमसूत्र में श्रमण-माहन की पर्युपासना की फलपरम्परा प्रकट की गई है ये श्रमण माहन अनगार ही होते हैं इसलिये यहां सूत्रकार ने अनगार की कल्पविधि कही है-(पडिमापडिवनस्स अणगा. रस्त ) इत्यादि।
- ત્રીજા સ્થાનના ચેથા ઉદેશકનો પ્રારંભ
ત્રીજે ઉદ્દેશક પૂરે થયો. હવે ચેથા ઉદ્દેશાને પ્રારંભ થાય છે. આ ચાથા ઉદ્દેશાને ત્રીજા ઉદ્દેશા સાથે આ પ્રમાણે સંબંધ છે–ત્રીજા ઉદ્દેશામાં પુલ અને જીવના ધર્મ ત્રણ સ્થાની અપેક્ષાએ પ્રરૂપિત કરવામાં આવ્યા છે. આ ઉદ્દેશામાં પણ તેમનું વિશેષ કથન ત્રણ સ્થાનોને આધારેજ કરવામાં આવશે. • આ પ્રકારના સંબંધવાળા આ ઉદ્દેશાના છ સૂત્રે માંનું સર્વપ્રથમ સૂત્ર આ प्रभारी छ-" परिमापडिवनस्स" त्याह