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सुंघा टीका स्था०३७० ३०४९ वचनमनसो तन्निषेधत्रित्वनिरूपणम्
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छाया - त्रिविधं वचनं प्रज्ञप्तं, तद्यथा तद्वचनं, तदन्यवचनं, नो अवचनम् १। त्रिविधमवचनं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-नोतद्वचनं, नोतदन्यवचनं, अवचनम् २। त्रिविधंमनः प्रज्ञप्तं, तद्यथा - तन्मनः, तदन्यमनः, नो अमनः ३ । त्रिविधममनः प्रज्ञप्तं, तद्यथा नोतन्मनः नोतदन्यमनः, अमनः ४ ॥ सू० ४९ ॥
टीका - ' तिविहे वयणे ' इत्यादि, सूत्र चतुष्टयस्य संक्षिप्ता व्याख्यात्रिविध वचनम् । तदेवाह - तद्ववचनम् - तस्य विवक्षितार्थस्य घटादेर्वचनं भणनं तद्वचनं घटार्थापेक्षया घटवचनवत् । तदन्यवचनम् - तस्माद् विवक्षितघटादेरन्यः पटादिः, तस्य वचनं तदन्यवचनम्, घटापेक्षया पटवचनवत् । नो अवचनम् - अभ णननिवृत्तिर्वचनमात्रं डित्यादिवदिति । [ अथवा सः - शन्दव्युत्पत्तिनिमित्त-धर्महुए चारसूत्र का कथन करते हैं - ( तिविहे वयणे पण्णत्ते ) इत्यादि ।
सूत्रार्थ- वचन तीन प्रकारका कहा गया है जैसे - तद्वचन, तदन्यवचन और नो अवचन, अवचन भी तीन प्रकारका कहा गया है - जैसे-नो तहचन, नो तदन्यवचन और अचचन, मन भी तीन प्रकार का कहा गया है जैसे तन्मन, तद्न्य मन और नोअमन, अमन भी तीन प्रकार का कहा गया है - जैसे नोतन्मन, नोतदन्यमन और अमन ।
टीकार्थ - इस सूत्र की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार से है - घटादिरूप दिवक्षित अर्थ का कहनेवाला वचन तद्वचन है जैसे घटादि अर्थ की अपेक्षा घटवचन तद्वचन होता है विवक्षित घटादि से अन्य जो पटादि है वह अन्य है उनका कहने वाला वचन तदन्यवचन है जैसे घटापेक्षा से पटवचन तद्न्यवचन होता है, वचनमात्र का नाम नो अवचन है यह नो पाहन ४२तां यार सूत्रो न पुरे छे-" तिविहे वयणे पण्णत्ते " छत्याहिवयन त्रषु अारनां ह्यां छे - ( १ ) तद्ववयन, (२) तहन्यवयन भने (3) નામવચન, વચનના પણ નીચે પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર છે-(૧) નૈાતદ્વવચન, (२) नोतहन्यवयन, भने (3) अवयन भन यागु त्रषु प्रहार अह्यु छे-(१) तन्भन, (२) तहन्यभन, अने (3) नोभन, अमन यात्रा अभरनु धुं छे- (१) नो तन्भन, (२) नो तहन्यभन भने (3) असन,
આ સૂત્રનુ' ‘સ‘ક્ષિપ્ત વિવેચન આ પ્રમાણે છે-(૧) ઘટાદિપ અમુક અને કહેનારા વચનને તદ્નચન કહે છે. જેમકે ઘટાદિ અની અપેક્ષાએ ઘટરૂપ વચનને તદ્વવચન કહેવાય છે. વિક્ષિત ( અમુક ) ઘટાદિ સિવાયના જે પટાદ છે, તે અન્ય પદાર્થ રૂપ હાવાથી તેમનુ કથન કરનાર વચનને તદન્ય વચન કર્યુ છે, જેમકે ઘટની અપેક્ષાએ પુરૂપ વચન તન્ય વચન ગણુાય છે.