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सुधा का स्था० २ उ० १ ० ११ समयदयोन्मादनत्यनिरुपण २०७
'जाय' इति ह यावच्छन्देन-दोहि ठाणेहिं आया केवलं यो युना ' इत्यादि । 'जाय केवलनाणं उप्पाडेजा' इति पर्यन्तं बोव्यम् ।। मृ० १० ॥
केवलज्ञानं च कालविग भवतीनि तमाह
मूलम्--दो समाओ पन्नत्ताओ । तं जहा-ओलप्पिणी संना चेव, उस्सप्पिणी समा चेव ॥ सू० ११ ॥ ____ छाया-टे समे प्रज्ञप्ते । तद् यथा-अवर्पिणी समा चैत्र, उत्सर्पिणी समा चैव ।। मू० ११ ॥
टीका-'दो समानो' इति । समा-कालविशेषः । अन्यत् मुगमम् ॥ १० ११ ॥ और उपादेय के तत्वज्ञान से संपन्न बन जाता है जब आत्मा में हेयोपादेय का तात्विक ज्ञान जागृत हो जाता है तब आत्मा में एक
प्रकार का ऐसा आत्मिक बल प्रकट होता है कि जिनसे उसे परम संवेग उत्पन्न होता है "संसागत् भीतिसंवेगः" संवेग उत्पन्न होने से फिर यह धर्म को जीवन में उतारने की ऐसी हद इच्छा वाला बन जाता है कि जिससे वह अपनी शक्ति के अनुनार धर्म को ग्रहण ही कर लेना है यहां यावत्शब्द से " दोहिं ठाणेहिं आया केवल घोहिंदुज्झज्जा" इस पाठ से लेकर "जाव केवलनाणं उप्पा. डेज्जा"इस पाठ तक का ग्रहण हआ है ॥४० १०॥
केवलज्ञान कालविशेष में होता है इसलिये अब उसी कालविशेष को सूत्रकार कहते हैं-"दो समाओ पन्नताओ" इत्यादि ॥११॥
समा नाम कालविशेष का है और यह कालांवशेष उत्सर्पिणी ચુત બની જાય છે ત્યારે આત્મામા દેપાદેયનું તાત્વિક જ્ઞાન જાગૃત થઈ જાય છે ત્યારે આત્માની અંદર એક જાતનું આત્મબળ પ્રકટ થાય છે અને तना द्वारा तेना मात्मामा ५२म सवगरपन याय छे. " मंसारात् मीनि सवेग"
स पन पाथा ते पनपनमनपाने निया બને છે. તેથી તે પોતાની શક્તિ અનુસાર ધર્મને પ્રહ કરી લે છે. અહીં " जाय ( यावत् " ५:थी " दोहि ठाणेहिं आया फेवला योहि चुम्ना " पाथी २३ ४शन "जाब फेवलना पाटेना” मा भूत्रा: ५यतन। પાઠ ગ્રહુ છું કરવામાં આવે છે સૂ૦ ૧૦ ૫
કેવળજ્ઞાન કાળવિશે માં જ થાય છે, તેથી હવે મૂત્રકાર તે કળવશેની ३५९।२ -"यो समाओ पग्णतामो" त्या ॥ ११ ॥
विशेषतुं नाम "स" (५). तणविना .