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सुधा टोका स्था० उ० १ सू०५४ जंबूहीपादीनामेकत्वनिरूपणम्
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सामान्यस्कन्धवर्गणैकत्वाधिकारः म एक निदेशिक मागास्य स्कन्धविशेषस्यैकतामाह
मूलम् -- एगे जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं जाव अलं किं विसेसाहिए परिक्लेवेणं ॥ सू० ५४ ॥
छाया - एको जम्बूद्वीपो द्वीपः सर्वद्वीपसमुद्राणां यावत् चिकिञ्चि द्विशेपाधिकं परिक्षेपेण || सृ० ५४ ॥
टीका- ' एगे जंबुद्दीवे ' इत्यादि
जम्बूद्वीप:- जम्या जम्वृक्षेण उपलक्षितो द्वीप:- जस्डीपनामको द्वीपः, कीटाः सः ? इत्याह- सर्वद्वीपसमुद्राणां 'जाव' यावन्, अत्र-वादेन"सव्वमंतर सव्वखुड्डाएवढे तेल्लाव्यसंठाणसंठिए एवं जो आयाविभेणं, तिनि जोयणमयसहरसाई सोलसहरसा दोनि समाई राचावीलाई तिनकोसा अट्ठावीसं धणुरायं तेरसअंगुलाई " इति पाठः संवात । सर्वाभ्यन्तरका=सर्वद्वीपसमुद्रमध्यस्थितः सर्वक्षुद्रका=सकलद्वीपेक्षा लघुः वृत्तोला, गोलाकारः, तैलापूपसंस्थान संस्थितः - बैलापूपाकृतिकः, तथा आयाम विकण=
सामान्य स्कन्धवर्गणा की एकता प्रस्तुत है इसलिये जो स्कन्ध अजय प्रदेशोंवाला है - संख्यात असंख्यात प्रदेशोवाला है और इसी से जो अजघन्योत्कर्ष प्रदेशावह है लोक के संख्या असंख्यानप्रदेशों में अवस्थित है - ऐसे उस स्वन्ध विशेष की एकता का कथन किया जाता है - " एगे जंबुद्दीवे दीवे " इत्यादि ॥ ५४ ॥
टीकार्थ- जम्बू वृक्ष से उपलक्षित यह जम्बूदीप नाम का द्वीप जो कि समस्त द्वीप और समुद्रों के मध्य है तथा जिसका विस्तार एक लाख योजन का है और जो समरतीयों की अपेक्षा लघु है आकार जिसका गोल है इसी से जो पुए जैली है
સામાન્ય સ્કવણાની એકતાનું નિરૂપણુ યાી તુ છે, તેથી જે ક્ધ અજધન્યાય દેશેાવાળા છે. સખ્યાત અસખ્યાત પ્રદેશવાળા છે અને તેથી જ જે અજધન્યાહ પ્રદેશાવગાઢ છે. લેકના સાત અ‹ ëાત પ્રદે શેમાં જે અપસ્થિત ( રહેલે ) છે, એવા તે કવિશેષની એકતાનું કંધન
४२वामां भाव हे " एगे जबहीवे " त्याहि ॥ १४ ॥
अर्थ-दीप से
वृक्षवी उपसदिन आ यू नागना દીપ કે જે સમસ્ત દ્વીપે। અને સમુદ્રોનીધ્યમાં આવે છે તથા જેને વિરનાર એક લાખ ચૈાજનને છે, જે વાં દ્વીપ કરનાં નાના છે, જે માલ
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