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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १३ याथातथ्यस्वरूपनिरूपणम् ३५३ ___ अन्वयार्थः-एवम् (जे भिक्खू) यो भिक्षुः-परदत्तपिण्डभोजी (णिविकचणे) निष्किञ्चनः-बायपरिग्रहवर्जिसः (मुलूहजीवी) सुरूक्षजीवी- रूक्षशुष्कभोजन कर्चा, एवं यः (मारवं) गौरववान्-ऋद्धिरससातगौरवामियः, एबम् (सिलोग गामी) श्लोककामी-आत्मश्लाघामिलापी (होइ) भवति सः (अबुज्झमाणा) अवुद्धयमानः-परमार्थमोक्षमार्गमजानाना (एय) एतदेच निश्चिनत्यादिकम् आत्मश्लाघापरायणो भूत्वा (आजीव) आजीवम्-भाजीविका कुर्वन् (पुणो पुणो) तथा 'सुलूछ जीवी -सुरुक्षजीवी' लूखा सूका आहार करता है एवं 'जे -य:' जो 'गारवं-गौरवम्' ऋद्धिरसमानारूप गौरव प्रिय होइ-भवति' होता है तथा 'लिलोगगामी-श्लोशनामी' अपनी श्लाघा की इच्छा रखता है वह 'अवुज्झमाणो-अवुध्यमान:' परमार्थले-तत्त्वतः मोक्ष. मार्ग को नहीं जाननेवाला 'एयं-एतत्' यह निष्कंचनादिक को 'आजीवं-आजीवम्' आजीविकाके साधनरूप करके 'पुणो पुणो-पुनः पुनः' पारयार संसारमें 'विप्परियासं-विपर्यासम्' जन्म, जरा शोक एवं मरणादिकको 'एति-उपैति' प्राप्त करता है ॥१२॥ अन्वयार्थ-जो भिक्षु साधु निर्दोषाहारका ग्रहण करता और पाश्यपरिग्रह से वर्जितहोकर रूक्षशुष्क (लखा सुखा) भोजन करने वाला है । एवं जो ऋद्धिरस सातागौरव का प्रिय है । एवं आत्मश्लाघा का अभिलाषी है। वह परमार्थ मोक्ष मार्ग को नहीं जानते हुए अपनी प्रशंसा में लीन होकर निष्किञ्चनस्वादि बाह्यपरिग्रह के परित्याग को ही जीवी' युमो भु! BABA२ ४२ छ. तथा 'जे-य' र 'गारवं-गौरवम्' ऋद्धि २स साता ३५ गो२१ प्रिय होइ-भवति' डाय छे तथा 'सिलोगगामी-श्लोकगामी' पातानी साधानी छ। राणे छे, ते 'अबुज्झमाणो-अबुध्यमानः' ५२. भाथ थी-तत्वत: माक्षभान anyापा 'एय-एतत्' मा नयनाहिन 'आजीव-भाजीवम्' माना साधन ३५ मनावाने 'पुणो पुणेा-पुनः पुनः पावा२ संसारमा 'विप्परियास-विपर्यासम्' -भ, ०४२॥ ४ भने भाहि हुने 'एति-उपैति' प्राप्त ४२ छे. ॥१२॥ અન્વયાર્થ—–જે સાધુ નિર્દોષ આહારને ગ્રહણ કરે છે, અને બાહ્ય પરિ. ગ્રહથી વન લુખે સુકે આહાર કરવા વાળો છે એવો પુરૂષ પણ જે અદ્ધિ રસ શાતા ગૌરવપ્રિય હેય તથા આત્મશ્લાઘાને ઈરછનાર હોય તે પરમાર્થ એવા મક્ષ માર્ગને ન જાણુતે થકે પિતાની પ્રશંસામાં જ લીન અકિચનત્વાદિ
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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